यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ रविवार को लखनऊ में एक ब्राह्मण संस्था के कार्यक्रम में शामिल हुए और चाणक्य का जिक्र कर बड़ा संदेश दिया। ब्राह्मणों को चाणक्य का वंशज बताकर सीएम योगी ने एक तरफ बिरादरी को संदेश दिया तो वहीं चुनावी रणनीति का भी संकेत दिया है। उन्होंने कहा, ‘भारत तब महान बना था, जब चाणक्य इस देश को नई दिशा दे रहे थे। आप सब आचार्य चाणक्य के वंशज हैं।’ यही नहीं उन्होंने सनातन धर्म के लिए ब्राह्मणों के योगदान का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘यदि सनातन धर्म जीवित रहा है और पूरी दुनिया के अंदर अपने भव्य ध्वज को गाड़ कर चल रहा है तो इसलिए कि वह ‘ब्रह्म तत्व’ हमारे पास मौजूद है। जो सनातन धर्म की आत्मा में सदैव विराजमान रहकर, स्वयं कष्ट सहकर भी इस धर्म पर आंच नहीं आने देता।’
सनातन धर्म और देश निर्माण में ब्राह्मणों की अहम भूमिका बताते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक तरह से इस बात का भी संदेश दे दिया कि यह समुदाय चुनावी लिहाज से भी अहम है। आमतौर पर ब्राह्मणों को भाजपा का समर्थक वर्ग माना जाता रहा है, लेकिन बीते कुछ सालों में विपक्षी दलों ने यूपी में इस बिरादरी को साधने की जमकर कोशिशें की हैं। मायावती के करीबी नेता सतीश चंद्र मिश्र इस रणनीति पर काम करते रहे हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी ने भी परशुराम की प्रतिमा लगाने का ऐलान किया है। यही नहीं हर जिले में ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन भी समाजवादी पार्टी कर रही है।
बीते कुछ सालों में योगी सरकार में ब्राह्मण के उत्पीड़न की बातें विपक्षी दल करते रहे हैं। ऐसे में यह आशंका जताई जा रही थी कि भाजपा का परंपरागत वोट बैंक रहा यह समुदाय उससे छिटक सकता है। ऐसे में लखनऊ में ब्राह्मण संस्था के कार्यक्रम में न सिर्फ सीएम योगी का शिरकत करना बल्कि राजनाथ सिंह का भी शामिल होना बड़े संकेत देता है। इस आयोजन में योगी सरकार के मंत्री और ब्राह्मण चेहरे ब्रजेश पाठक की अहम भूमिका थी। यही नहीं रीता बहुगुणा जोशी और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी को भी इसमें आमंत्रित किया गया था। इसके अलावा डिप्टी सीएम दिनेश चंद्र शर्मा भी इस आयोजन में मौजूद थे। इस तरह दिग्गज नेताओं के जुटान और ब्राह्मण बिरादरी की तारीफ से सीएम योगी आदित्यनाथ ने यह संदेश देने का प्रयास किया कि आज भी भाजपा उनके लिए पहली पसंद क्यों हो सकती है।
क्यों हर पार्टी ब्राह्मणों को लुभाने में जुटी
उत्तर प्रदेश में सवर्णों की आबादी अन्य राज्यों की तुलना में काफी ज्यादा है। इसमें भी ब्राह्मणों की संख्या 9 से 10 फीसदी के करीब बताई जाती है। प्रदेश की कई सीटों पर इस बिरादरी के वोट नतीजे को बदलने का दम रखते हैं। इसके अलावा ब्राह्मणों को ओपिनियन लीडर कम्युनिटी के तौर पर देखा जाता रहा है। 2007 में मायावती की ओर से इस बिरादरी को लुभाने का कार्ड चला गया था और दलित, मुस्लिमों के साथ ब्राह्मणों को जोड़कर वह सरकार बनाने में कामयाब रही थीं। तब से ही यूपी में ब्राह्मणों की राजनीतिक ताकत का अहसास राजनीतिक दलों को रहा है। भले ही मायावती बाद में उस रेस में पीछे हट गईं, लेकिन दूसरे दलों में इसके लिए प्रतिस्पर्धा लगातार जारी है।