रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया है। राजधानी कीव समेत लगभग सभी शहरों में बमबारी शुरू हो गई है। यूक्रेन के सैन्य ठिकानों को भी रूस निशाना बना रहा है। उधर, यूक्रेन ने भी रूस पर जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने यह भी साफ कर दिया है कि वह अब पीछे हटने वाले नहीं हैं।

इस बीच, पूरी दुनिया की निगाहें नेटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कदम पर टिक गईं हैं। हालांकि नेटो ने यह भी साफ कर दिया है कि वह फिलहाल सैन्य मदद नहीं करेगा। इसके बाद सभी के मन में यही सवाल है कि अब आगे क्या होगा? क्या ये तीसरे विश्व युद्ध की आहट है? अगर ऐसी स्थिति बनी की भारत को यूक्रेन और रूस में से किसी एक का चुनाव करना होगा तो किसका करेगा? ‘अमर उजाला’ ने रिटायर्ड वाइस एयर चीफ मार्शल आरसी वाजपेयी और विदेश मामलों के जानकार सुशांत सरीन से बात करके इन सभी सवालों के जावब जानने की कोशिश की। पढ़िए दोनों ने क्या कहा?

रूस क्या करने की कोशिश कर रहा है?

वाइस एयर चीफ मार्शल वाजपेयी ने कहा, ‘रूस ने पूर्वी यूक्रेन के शहरों दोनेत्सक और लुहांस्क को स्वतंत्र देश के रूप में घोषित कर दिया है। इन दोनों शहरों में रूस ने अपनी सेना तैनात कर दी है। लेकिन रूसी सेना और वायुसेना के हमले केवल बॉर्डर वाले इलाकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अब यूक्रेन के सभी शहरों में हमले शुरू हो गए हैं। मतलब साफ है कि रूस जब तक अपनी मनमानी नहीं कर लेता तब तक वह यूक्रेन को नहीं छोड़ेगा। मनमानी का मतलब जब तक यूक्रेन को पूरी तरह से अपने कब्जे में नहीं कर लेता तब तक वह पीछे नहीं हटेगा।
सुशांत सरीन कहते हैं कि रूस ने अपने हमले के तरीकों से साफ कर दिया है कि जब तक वह यूक्रेन के सरकारी तंत्र को पूरी तरह से न बदल दे, तब तक शांत नहीं होगा। यूक्रेन पर तीन तरफ से रूस हमला कर रहा है। पूरे यूक्रेन को टारगेट बनाया गया है। ऐसे में उम्मीद कम ही है कि रूस बीच में इसे छोड़ दे।

रूस चाहता क्या है?

रूस चाहता है कि भले ही यूक्रेन दुनिया में स्वतंत्र देश के रूप में रहे, लेकिन उसका पूरा कंट्रोल रूस पर बना रहे। इसके लिए सत्ता परिवर्तन जरूरी है। इस जंग के जरिए रूस यही करने की कोशिश कर रहा है। हंगरी और चेकोस्लोवाकिया इसके उदाहरण हैं। ये दोनों देश रूस से अलग होने की कोशिश करने का अंजाम भुगत चुके हैं।
यूक्रेन के पास क्या विकल्प है?