इटावा में मुलायम सिंह यादव का शव अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था। सियासी दुनिया के तमाम लोग नेताजी को अंतिम विदाई देने के पहुंच रहे थे। इसी दौरान वहां आते हैं आजम खान। आंखों पर चश्मा, चेहरे पर मास्क, फिर भी उनके जज्बात छलक ही उठे। आजम खान शीशे के अंदर रखे मुलायम को शव को बड़े ही संजीदा भाव से सहलाते नजर आए। इसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह अपने बेहद पुराने दोस्त के साथ रिश्तों की गर्माहट को शायद आखिरी बार महसूस करना चाहते थे।

जनता पार्टी के जमाने के थे साथी

यूं तो आजम खान और मुलायम सिंह के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव आता रहा। लेकिन इसके बावजूद दोनों की दोस्ती ऐसी थी, जिसकी जमाना मिसाल देगा। मुलायम और आजम की दोस्ती जनता पार्टी के जमाने से थी। जब मुलायम पहली बार 1989 में मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने आजम खान को कैबिनेट मंत्री का ओहदा दिया था। वहीं जब 1992 में समाजवादी पार्टी बनी तो आजम खान इस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। आजम खान को मुलायम सिंह को किस कदर भरोसा था वह इससे साबित होता है कि नेताजी ने उन्हें ही पार्टी का संविधान बनाने की जिम्मेदारी भी थी।

जब आई थी रिश्तों में दूरी

ऐसा नहीं था कि मुलायम और आजम के रिश्तों में कभी दरार नहीं आई हो। ऐसा हुआ था साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान। दोनों के रिश्तों में तल्खी का नतीजा कुछ ऐसा हुआ कि आजम को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। हालांकि यह सब बहुत दिनों तक नहीं चल सका और दिसंबर 2010 में एक बार फिर से आजम खान सपा में पहुंच चुके थे।