महाराष्ट्र में शुरू हुआ सियासी तूफान थम नहीं रहा है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को मिले पार्टी के नाम पर चुनाव चिन्ह से बाला साहब ठाकरे के परिवार को न सिर्फ बड़ा झटका लगा है, बल्कि सियासत के लिए रास्ते भी चुनौतीपूर्ण हो गए हैं। फिलहाल कानूनी रूप से अभी उद्धव ठाकरे सुप्रीम कोर्ट का रुख तो कर लिया है, लेकिन सियासत को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर भी समानांतर रूप से वैकल्पिक तैयारियां चल रही हैं। सूत्रों के मुताबिक महानगर पालिका के होने वाले चुनावों से पहले ही अगर फैसला उद्धव ठाकरे पक्ष में आता है, तो ठीक अन्यथा वह अपनी पार्टी का नाम बाला साहब ठाकरे के नाम से जोडकर ही रखेंगे। हालांकि अक्तूबर में हुए उपचुनाव के दौरान उद्धव ठाकरे की पार्टी को ‘शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ का नाम मिल चुका है।

महाराष्ट्र में अगले साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। इन चुनावों से पहले लोकसभा के चुनाव भी हो जाएंगे। इसी बीच शिवसेना से ठाकरे परिवार का पूरी तरीके से बाहर हो जाना महाराष्ट्र की सियासत में तूफान खड़ा कर रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है एक ओर जहां उद्धव ठाकरे अपने पिता बाला साहब ठाकरे की विरासत वाली शिवसेना और उनके चुनाव चिन्ह को पाने के लिए अब एड़ी से चोटी का जोर लगाकर सुप्रीम कोर्ट का रुख कर चुके हैं। वहीं महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी ने भी अभी से अपनी पूरी सियासी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है। उद्धव ठाकरे गुट से जुड़े सूत्रों का कहना है कि असली लड़ाई तो वह कोर्ट में होगी, लेकिन वैकल्पिक बंदोबस्त भी होना बेहद जरूरी है। इसलिए मुंबई महानगरपालिका के होने वाले चुनावों से पहले ठाकरे परिवार अपनी विरासत की सियासत को एक नई राजनीतिक पार्टी के नए नाम के साथ लॉन्च भी कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक ठाकरे परिवार पार्टी का चुनाव तय करेगा उसमें बाला साहब ठाकरे का नाम हर हाल में रखा ही जाएगा। जानकारों का मानना है कि पिछले साल अक्तूबर में हुए उपचुनाव के दौरान उद्धव ठाकरे ने जिस पार्टी नाम के साथ चुनाव लड़ा था, उसी नाम के साथ या उससे मिलते जुलते नाम के साथ फैसला उनके पक्ष में न आने पर पार्टी का नामकरण किया जाएगा।

सियासी जानकारों का मानना है कि ऐसा करके उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे के नाम को आगे कर जनता की न सिर्फ सहानुभूति बटोर कर पार्टी को खड़ा करना चाहते हैं। बल्कि वह पार्टी का नाम भी जनता से पूछ कर ही आगे बढ़ने की रणनीति भी बना रहे हैं। ठाकरे परिवार सबसे पहले अपने पिता की विरासत में तैयार की गई शिवसेना और उनके चुनाव चिन्ह को पाने के लिए कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक ले कर चला ही गया है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ठाकरे परिवार ने अपने पास से गई पार्टी और चुनाव चिन्ह को न सिर्फ प्रतिष्ठा का सवाल बनाया है, बल्कि पूरी महाराष्ट्र को प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए इसे देख रहे हैं। ऐसे में सबसे पहले तो वह अपने चुनाव चिन्ह और पार्टी को वापस पाने की लड़ाई लड़ेंगे। ठाकरे परिवार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उद्धव ठाकरे इस मामले को राष्ट्रपति तक लेकर जाएंगे। वह कहते हैं कि इन तमाम प्रयासों के साथ-साथ पार्टी न सिर्फ वैकल्पिक नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर मंथन कर रही है, बल्कि बहुत हद तक उस पर सहमति भी बनाने का प्रयास किया जा चुका है।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हिमांशु शितोले कहते हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति को अगर बीते कुछ समय से देखें, तो सबसे ज्यादा सरगर्मियां यहीं देखने को मिली हैं। भारतीय जनता पार्टी ने भी पूरी ताकत से महाराष्ट्र पर अपना न सिर्फ फोकस किया है, बल्कि बड़े नेताओं की आमद भी दर्ज करानी शुरू कर दी है। शितोले कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का बीते कुछ दिनों में दो बार महाराष्ट्र का दौरा और इस वक्त गृह मंत्री अमित शाह का दौरा महाराष्ट्र की सियासत के गर्म हुए पारे की तस्दीक कर रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र में जिस तरीके से एकनाथ शिंदे और भाजपा नेताओं ने मिलकर सियासी ताना-बाना बुनना शुरू किया है, वह आने वाले दिनों के चुनावों में दिखना भी शुरू हो जाएगा।

शिवसेना से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जो नाम अक्तूबर में उपचुनाव के दौरान रखा गया था, उस नामकरण में जनता की भागीदारी और सहभागिता उतनी नहीं थी। क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में जा चुका है, ऐसे में वैकल्पिक तौर पर पार्टी ने अब जनता के बीच में जाकर नाम को लेकर भी चर्चा शुरू कर दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा करके पार्टी जनता के बीच में एक मैसेज देना चाहती है कि उद्धव ठाकरे उनके बीच में है और उनसे पूछ कर ही सारे फैसले लिए जा रहे हैं। ऐसा करने की मंशा न सिर्फ महाराष्ट्र की जनता को भरोसे में लेना है, बल्कि सहानुभूति के तौर पर भी उद्धव ठाकरे खुद को जनता के बीच में रखने की तैयारी कर रहे हैं।