सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भारत के चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की मांग करने वाली याचिकाओं पर आज फैसला सुना दिया है। न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली 5-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले में कहा गया है कि निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश की समिति द्वारा की जाए।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने क्या कहा

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने व्यवस्था दी कि निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश की समिति द्वारा ही की जाए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर नेता प्रतिपक्ष मौजूद नहीं हैं तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति संबंधी समिति में लिया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश की समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।

जस्टिस जोसेफ बोले- मतपत्र की शक्ति सर्वोच्च
उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मत फैसले में चुनाव प्रक्रियाओं में निष्पक्षता सुनिश्चित करने पर जोर देते हुए कहा कि लोकतंत्र लोगों की इच्छा से जुड़ा है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव निश्चित रूप से निष्पक्ष होने चाहिए। फैसला सुनाते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा कि एक पर्याप्त और उदार लोकतंत्र की पहचान को ध्यान में रखना चाहिए, लोकतंत्र जटिल रूप से लोगों की शक्ति से जुड़ा हुआ है। मतपत्र की शक्ति सर्वोच्च है, जो सबसे शक्तिशाली दलों को अपदस्थ करने में सक्षम है।

चुनाव आयोग निष्पक्ष और कानूनी तरीके से कार्य करने के लिए बाध्य
कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव में निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए नहीं तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना चाहिए और यह संविधान के प्रावधानों और न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए निष्पक्ष और कानूनी तरीके से कार्य करने के लिए बाध्य है। वहीं इस बीच, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी ने कहा कि चुनाव आयुक्तों को हटाने की प्रक्रिया सीईसी के समान ही होगी।