58 साल में ऐसा दूसरी बार हो रहा है जब देश की सबसे बड़ी ‘बॉर्डर गार्ड फोर्स’ यानी ‘बीएसएफ’ को 70 दिन बाद भी नियमित डीजी नहीं मिल सका है। 31 दिसंबर 2022 को पंकज कुमार सिंह रिटायर हुए थे, तभी से सीआरपीएफ डीजी डॉ. एसएल थाउसेन, इस पद का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे हैं। इससे पहले 2020 में 150 से ज्यादा दिन तक बीएसएफ को अपने नियमित डीजी का इंतजार करना पड़ा था। हैरानी की बात तो ये है कि केंद्र में डीजी या इसके समकक्ष पद के लिए मनोनयन एंपेनल्ड सूची में दर्जनभर से ज्यादा आईपीएस अधिकारी मौजूद हैं, लेकिन उनमें से किसी को भी बीएसएफ का डीजी लगाने के लिए उपयुक्त नहीं समझा जा रहा। इतना ही नहीं, बीएसएफ में 35 साल या उससे अधिक समय तक सेवा दे चुके अनुभवी कैडर अधिकारी हैं, मगर सरकार उन्हें अस्थायी डीजी की जिम्मेदारी देने को भी तैयार नहीं है।

बीएसएफ के पूर्व डीजी एवं पुलिस सुधारों के लिए अथक प्रयास करने वाले प्रकाश सिंह ने बीएसएफ में स्थायी डीजी न होने को लेकर नाराजगी जताई है। उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा है कि बीएसएफ में 68 दिन से कोई नियमित डीजी नहीं है। यह बहुत निराशाजनक है और बल की प्रशासनिक दक्षता के लिए ठीक नहीं है। फोर्स के मनोबल के लिए यह बुरा है। बीएसएफ के रिटायर्ड कैडर अधिकारी बताते हैं कि सरकार केवल आईपीएस को ही डीजी पद पर बैठाती है। कम से कम जब इस पद के लिए कोई नियमित डीजी नहीं मिल रहा हो, तो उस वक्त कैडर अधिकारी को बल की कमान सौंपी जा सकती है।

केंद्र की ‘एंपेनल्ड’ सूची में शामिल दो आईपीएस अधिकारियों ने कहा, ऐसे अहम पद को लंबे समय तक खाली रखना ठीक नहीं है। इससे उन अफसरों का मनोबल टूट जाता है, जो इस पद के काबिल हैं, लेकिन उन्हें जिम्मेदारी नहीं दी जाती। आईपीएस अधिकारियों का कहना है कि इससे पहले भी किसी एक ही अधिकारी को चार पांच बलों का कार्यभार दिया जाता रहा है। इससे दूसरे समकक्ष अफसरों की मानसिक पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। साल 2018 में एसएस देसवाल को आईटीबीपी का डीजी बनाया गया। उनके पास एसएसबी का अतिरिक्त प्रभार भी रहा। उन्हें सीआरपीएफ डीजी का भी अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया। इसके बाद बीएसएफ के डीजी का पद भी उन्हें मिल गया। कुछ समय बाद राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के डीजी के रूप में भी उन्हें तैनात कर दिया गया। केंद्र में डीजी या उसके समकक्ष आईपीएस अधिकारी होने के बाद एक ही डीजी को इतने बलों का प्रमुख बना दिया जाता है। केंद्र सरकार को मालूम होता है कि कौन अधिकारी कब रिटायर होगा, लेकिन वह नए अधिकारी का चयन नहीं कर पाती। बीएसएफ के पहले डीजी केएफ रुस्तमजी की नियुक्ति से लेकर 2020 तक के महानिदेशकों की तैनाती के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो मालूम पड़ता है कि अधिकांश डीजी जिस दिन सेवानिवृत्त होते थे, उसी दिन या उससे अगले दिन नए एवं नियमित डीजी कार्यभार संभाल लेते थे।

बीएसएफ के पहले डीजी बने थे केएफ रुस्तमजी

केएफ रुस्तमजी ने 21 जुलाई 1965 को बीएसएफ के पहले महानिदेशक का कार्यभार संभाला था। वे 30 सितंबर 1974 तक बल प्रमुख रहे। उनके बाद अश्वनी कुमार ने एक अक्तूबर 1974 को डीजी का पदभार ग्रहण किया। वे 31 दिसंबर 1978 तक रहे। श्रवण टंडन ने एक जनवरी 1979 को बीएसएफ की कमान संभाली और 30 नवंबर 1980 तक बने रहे। उनके बाद के. राममूर्ति ने एक दिसंबर 1980 को डीजी का पदभार ग्रहण किया। वे 31 अगस्त 1982 तक इस पद पर रहे। बीरबल नाथ ने दो अक्तूबर 1982 से 30 सितंबर 1984 तक डीजी का पद संभाला। एमसी मिश्रा, एक अक्तूबर 1984 से लेकर 31 जुलाई 1987 तक डीजी के पद पर बने रहे। एचपी भटनागर ने एक अगस्त 1987 को डीजी की कमान संभाली और 31 जुलाई 1991 तक इस पद बने रहे। टी. अनंथाचारी ने एक अगस्त 1991 को बीएसएफ डीजी का कार्यभार संभाला। वे 31 मई 1993 तक इस पद पर रहे।

प्रकाश सिंह ने संभाली थी बीएसएफ डीजी की कमान

प्रकाश सिंह ने नौ जून 1993 को डीजी की कमान संभाली और वे 31 जनवरी 1994 तक बने रहे। उनके बाद डीके आर्य को एक फरवरी 1994 को बल प्रमुख बनाया गया। उन्होंने 4 दिसंबर 1995 तक इस अपनी सेवाएं दी। अरुण भगत को चार दिसंबर 1995 को बल का कार्यभार सौंपा गया। वे एक अक्तूबर 1996 तक इस पद पर बने रहे। एके टंडन को एक अक्तूबर 1996 को बल प्रमुख बनाया गया। उन्होंने 4 दिसंबर 1997 तक अपनी सेवाएं दी। उनके बाद ईएन राममोहन ने 4 दिसंबर 1997 को बल की कमान संभाली और वे 30 नवंबर 2000 तक इस पद पर बने रहे।