लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व के हाथियों में शुमार हथिनी दुर्गा के बचपन की कहानी बेहद मार्मिक है। दुर्गा को दक्षिण सोनारीपुर रेंज बेस कैंप के महावत इरशाद से मां और पिता दोनों का प्यार मिला। डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘द एलिफैंट व्हिसपरर्स’ के ऑस्कर जीतने के बाद दुर्गा भी चर्चा में है।
महावत इरशाद ने बताया कि मैं दुर्गा (हथिनी) के साथ रहने को अभ्यस्त हो चुका हूं। उसे भी हमारे बिना चैन नहीं मिलता। अक्सर जब मैं आराम कर रहा होता हूं और दुर्गा का खेलने मन होता है। वह चारपाई के पास आकर मुझे जगा देती है। साथ ले जाकर खेलने को बाध्य करती है। उसकी थोड़ी सी तकलीफ से मुझे बेचैनी होने लगती है। कभी मेरी तबियत खराब हुई तो वह सुस्त हो जाती है। हम दोनों का रिश्ता मां-बेटी जैसा है।
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हाथ नहीं छोड़ती, जब तक कुछ खाने को न मिले
महावत इरशाद और सोनारीपुर रेंज के डिप्टी रेंजर सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि दुर्गा बेस कैंप की रौनक बन गई है। वह सभी महावतों, वनकर्मियों, चारा कटर्स के सरकारी आवास को पहचानती है। वन कर्मियों के आवास पर जाना उसकी दिनचर्या में शामिल है। वह सूंड़ से वनकर्मियों का हाथ पकड़ लेती है और तब तक नहीं छोड़ती, जब तक उसे कुछ खाने को नहीं मिल जाता।
24 हाथी और आठ महावत हैं बेस कैंप में
दुधवा नेशनल पार्क के सलूकापुर, छंगा नाला, कैमहया और दुधवा में कुल 24 हाथी हैं। इसमें सात नर और 17 मादा हाथी हैं। इन हाथियों के देखभाल की जिम्मेदारी आठ महावतों के कंधे पर हैं। बेहतर खानपान की जिम्मेदारी चारा कटर्स की है। बेस कैंप में रहने वाले सभी राजकीय हाथी महावतों को लाड़-प्यार करते हैं।