एक रिश्ता ऐसा भी: इरशाद ने ‘दुर्गा’ को पाला, फुटबॉल की शौकीन, खेलने के लिए महावत को चारपाई से उठा देती है

    लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व के हाथियों में शुमार हथिनी दुर्गा के बचपन की कहानी बेहद मार्मिक है। दुर्गा को दक्षिण सोनारीपुर रेंज बेस कैंप के महावत इरशाद से मां और पिता दोनों का प्यार मिला। डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘द एलिफैंट व्हिसपरर्स’ के ऑस्कर जीतने के बाद दुर्गा भी चर्चा में है।

    महावत इरशाद ने बताया कि मैं दुर्गा (हथिनी) के साथ रहने को अभ्यस्त हो चुका हूं। उसे भी हमारे बिना चैन नहीं मिलता। अक्सर जब मैं आराम कर रहा होता हूं और दुर्गा का खेलने मन होता है। वह चारपाई के पास आकर मुझे जगा देती है। साथ ले जाकर खेलने को बाध्य करती है। उसकी थोड़ी सी तकलीफ से मुझे बेचैनी होने लगती है। कभी मेरी तबियत खराब हुई तो वह सुस्त हो जाती है। हम दोनों का रिश्ता मां-बेटी जैसा है।

    मधुमक्खियों ने काट-काटकर कर दिया था बीमार 
    महावत इरशाद बताते हैं कि जिस समय दुर्गा अमानगढ़ के वनाधिकारियों मिली थी, भूख से बेहाल थी। मधुमक्खियों के झुंड ने उसे काट-काट कर बीमार कर दिया था। उसके पूरे शरीर में सूजन थी।
    नौ अक्टूबर 2018 को दुधवा लाए जाते ही डीटीआर के तत्कालीन एफडी रमेश चंद्र पांडेय और दुधवा नेशनल पार्क के उपनिदेशक महावीर कौजलगि ने दुर्गा के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उसे सौंप दी। मैनें उसे कई दिनों तक रगड़-रगड़ कर नहलाया और उसके शरीर में लगे मधुमक्खियों के डंक निकाले। इस बीच दुधवा के पशु चिकित्सक डॉ दयाशंकर बराबर दुर्गा की देखभाल और इलाज करते रहे।
    शुरुआती दौर में छह महीने तक उसे बोतल से दो डिब्बा दूध के पाउडर का घोल दिया जाता था। इसके बाद एक डिब्बा पाउडर के घोल के साथ ही तीन लीटर गाय का दूध और साढ़े तीन लीटर गाय के दूध में दलिया दी जाती थी। धीरे-धीरे दुर्गा की उम्र बढ़ने के साथ उसके आहार में बढ़ोतरी की गई। इसमें उसे दाल, चावल, गुड़ नमक, सेब, केला आदि फल दिए जाने लगे। अमानगढ़ से आने के बाद दुर्गा को 40 दिन तक दुधवा में अकेले रखा गया। प्रतिदिन उसके शरीर पर 100 ग्राम सरसों के तेल की मालिश की जाती थी।
    पूरी तरह स्वस्थ होने पर उसे मादा हाथी रूपकली के साथ करीब साढ़े तीन साल तक दुधवा में रखा गया। रूपकली ने तो दुर्गा पर अपनी पूरी ममता उड़ेल दी। वह उसकी अपने बच्चों की तरह देखभाल करती थी। उसका साढ़े तीन साल का बचपन दुधवा में बीता। इसके बाद आठ फरवरी 2022 को दुर्गा को मादा हाथी रूपकली के साथ सलूकापुर बेंस कैंप भेजा गया।

    हाथ नहीं छोड़ती, जब तक कुछ खाने को न मिले

    महावत इरशाद और सोनारीपुर रेंज के डिप्टी रेंजर सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि दुर्गा बेस कैंप की रौनक बन गई है। वह सभी महावतों, वनकर्मियों, चारा कटर्स के सरकारी आवास को पहचानती है। वन कर्मियों के आवास पर जाना उसकी दिनचर्या में शामिल है। वह सूंड़ से वनकर्मियों का हाथ पकड़ लेती है और तब तक नहीं छोड़ती, जब तक उसे कुछ खाने को नहीं मिल जाता।

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