माफिया अतीक अहमद एक बार फिर मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण के केंद्र में होगा। माफिया का शहर पश्चिमी सीट पर लगातार जनाधार गिरता गया। बदले माहौल में सपा और बसपा की नजर मुस्लिमों पर है।

बदलते सियासी समीकरण के बीच अतीक अहमद को केंद्र में रखकर मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण की कवायद शुरू हो गई है। अतीक का अपने गढ़ शहर पश्चिमी सीट में भले ही लगातार जनाधार खिसकता चला गया हो, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं के बीच सरकार विरोधी भावना को भुनाने में सभी विपक्षी दलों में होड़ है। उमेश पाल हत्याकांड के बाद बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयानों को इसी रूप में देखा जा रहा है।

अतीक अहमद शहर पश्चिमी से 1989 में पहली बार विधायक चुना गया और इसके बाद लगातार पांच बार विधानसभा पहुंचने में सफल रहा। इस दौरान शहर पश्चिमी के अलावा अगल-बगल की सीटों की सियासत में भी उसका दखल रहा, लेकिन राजू पाल की हत्या के बाद जनाधार लगातार खिसकता गया। भाई अशरफ के अलावा खुद अतीक को 2012 में पूजा पाल से पराजय मिली थी।

अतीक और अशरफ को अलग-अलग चुनावों में मिले मतों को देखें तो लगातार इसमें कमी आई। 2004 में अतीक फूलपुर से सांसद चुना गया था। 2004 के चुनाव में अतीक को 2,65, 432 वोट मिले थे, लेकिन 2018 में फूलपुर लोकसभा के लिए हुए उपचुनाव में उसे महज 48, 096 मत मिले।

2005 के उपचुनाव में अशरफ ने पूजा पाल को हराया
सांसद चुने जाने के बाद अतीक ने शहर पश्चिमी की राजनीतिक विरासत भाई अशरफ को सौंप दी लेकिन 2004 के चुनाव में वह राजू पाल से हार गया। अशरफ को उस चुनाव में 65715 वोट मिले थे। इसके बाद राजू पाल की हत्या के बाद 2005 में हुए उपचुनाव में 90836 वोट पाकर अशरफ ने पूजा पाल को हरा दिया लेकिन 2007 के चुनाव में वह पूजा पाल से हार गया। अशरफ को सिर्फ 45876 वोट मिले थे।

 

इसके बाद लोकसभा चुनाव में हार मिलने के बाद अतीक ने फिर से शहर पश्चिमी विधानसभा की ओर रुख किया। उसने 2012 विधानसभा का चुनाव खुद लड़ा, लेकिन पूजा पाल से हार मिली। दूसरे स्थान पर रहे अतीक को 62229 वोट मिले थे।

मुस्लिम मतदाता पहले से भाजपा के खिलाफ

इस तरह से लगातार हार एवं घटते जनाधार की वजह से अतीक या उसके परिवार की सियासी पारी पर ग्रहण लगने की बात तो कही जा रही है लेकिन मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण में अब भी अतीक को एक फैक्टर के रूप में देखा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि मुस्लिम मतदाता पहले से भाजपा के खिलाफ हैं। ऐसे में मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के खिलाफ लगातार कार्रवाइयों से मुस्लिमों के एक वर्ग में नाराजगी बढ़ने की बात कही जा रही है।

इसका अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि उमेश पाल अपहरण कांड में अतीक को आजीवन कारावास सुनाए जाने के बाद कटरा स्थित बख्तियारी के एक युवा की टिप्पणी रही, भाई जेल में गया तो क्या, उसका कुछ बिगड़ थोड़े गया है। इस तरह की टिप्पणियां कई अन्य लोगों की भी थीं। ऐसे में माना जा रहा है कि एक वर्ग अब भी है जो अतीक के साथ है।

अतीक अब उतना बड़ा फैक्टर नहीं रह गया

इस पूरे मामले में वरिष्ठ वामपंथी नेता हरिश्चंद्र द्विवेदी का कहना है कि अतीक अब उतना बड़ा फैक्टर नहीं रह गया है। एक वर्ग उसके साथ जरूर है। मुस्लिम भाजपा के खिलाफ हमेशा रहे हैं। इस भावना का लाभ उठाने के लिए नेता अतीक एवं मुख्तार का नाम जरूर ले रहे हैं। वहीं सीएमपी डिग्री कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग के डॉ. संजय पांडेय का कहना है कि मुस्लिमों में भाजपा को लेकर एक धारणा पहले से है। ऐसे में मुख्तार और अतीक के खिलाफ कार्रवाई से ध्रुवीकरण बढ़ेगा।