इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने केंद्र व राज्य सरकार से मदरसों में मजहबी तालीम दिए जाने के संबंध में सवाल पूछा है। कोर्ट ने पूछा है कि सरकारी पैसे से चलने वाले मदरसों में मजहबी तालीम कैसे दी जा सकती है। कोर्ट ने केंद्र एवं राज्य सरकार को यह भी बताने को कहा है कि क्या यह संविधान में दिए गए तमाम मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। कोर्ट ने जवाब देने के लिए 6 सप्ताह का समय दिया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद होगी।

‘क्या यह संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन नहीं?’

जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने यह आदेश जौनपुर के एजाज अहमद की सेवा संबंधी याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार बताएं कि सरकारी खर्चे पर या सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों में मजहबी तालीम कैसे दी जा रही है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या यह संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सचिव, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार व प्रमुख सचिव, अल्पसंख्यक कल्याण व वक्फ याचिका पर जवाब दें।

‘हलफनामा दाखिल करके सभी सवालों के जवाब दें’
कोर्ट ने कहा कि ये सभी हलफनामा दाखिल करते हुए उपरोक्त प्रश्नों के भी उत्तर दें। याचिकाकर्ता ने खुद को वेतन न दिए जाने का मुद्दा उठाते हुए कोर्ट से हस्तक्षेप का अनुरोध किया है। याची का कहना है कि वह जौनपुर के शुदनीपुर स्थित एक मदरसे में पढ़ाता है और उसे वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने याची के मामले पर यह भी आदेश दिया है कि यदि याची उक्त मदरसे में पढ़ाता है व उक्त मदरसा सरकार से धन प्राप्त करता है तो उसके 6 अप्रैल 2016 के नियुक्ति पत्र के अनुसार उसे वेतन का भुगतान किया जाए।