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KGMU की रिपोर्ट: सिर्फ लत ही नहीं, गंभीर बीमारी भी है पोर्न देखना, किशोरों में बन रहा अवसाद व तनाव का कारण

केजीएमयू में दिखाने आने वाले किशोरों में से दस फीसदी के तनाव, अवसाद की वजह अश्लील सामग्री है। इसका खुलासा मानसिक रोग विभाग की ओर से प्रकाशित शोधपत्र में हुआ है।

किशोरों का पोर्न देखना सिर्फ एक लत नहीं है। यह उन्हें गंभीर मानसिक बीमारी की ओर ले जा रहा है। केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग की ओर से प्रकाशित शोधपत्र में इसका खुलासा हुआ है। विभाग की ओपीडी में तनाव और अवसाद से ग्रस्त कुल किशोरों में 10 फीसदी की वजह कहीं न कहीं अश्लील सामग्री की लत होती है। इस वजह से वे पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाते। हालत इतनी बिगड़ती है कि उन्हें मानसिक रोग विभाग में दिखाना पड़ता है।

जर्नल ऑफ साइकोसेक्सुअल हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन विभाग के डॉ. सुजीत कुमार कर और डॉ. सुरोभि चटर्जी ने किया है। डॉ. सुजीत ने बताया कि आज के डिजिटल युग में किशोरों का पोर्न देखना बड़ी बात नहीं रह गई है। मोबाइल और घरों में लगे वाईफाई कनेक्शन वे आसानी से इस तक पहुंच रहे हैं। किशोरों में इसकी शुरुआत उत्सुकता से होती है फिर यह लत और अंत में मानसिक समस्या बन जाता है।

इससे वे दिन-रात इसके बारे में ही सोचते रहते हैं। तनाव और अवसाद के साथ ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। एकाग्रता की कमी से पढ़ाई चौपट हो जाती है। सीधे तौर पर इससे पीड़ित बच्चे ओपीडी में नहीं आते, लेकिन कई बार बच्चे के असामान्य व्यवहार को देखते हुए मां-बाप की पड़ताल में इसका खुलासा होता है। कई बार काउंसिलिंग में समस्या की जड़ पोर्न पाई जाती है। कई सेशन में ऐसे बच्चों को समझाया जाता है। तनाव और अवसादग्रस्त बच्चों को दवाएं दी जाती हैं।

अनदेखी पर शादी के बाद आती हैं समस्याएं
डॉ. सुजीत के अनुसार किशोरों में यौन शिक्षा की कमी रहती है। मन में वे कई पूर्वाग्रह तथा गलत धारणाएं बना लेते हैं। प्रैक्टिकल के वक्त जब वे पूर्वाग्रह तथा धारणाओं के विपरीत स्थिति पाते हैं तो निराशा होती है। कई बार वे कुंठित हो जाते हैं। इससे वैवाहिक जीवन तक खतरे में पड़ जाता है। ओपीडी में ऐसे भी काफी मामले आते हैं। इनमें भी काउंसलिंग की जाती है।

हर सोमवार चलती है विशिष्ट क्लीनिक
केजीएमयू में हर सोमवार साइकोसेक्सुअल ओपीडी में डॉ. आदर्श त्रिपाठी ऐसे मामलों का इलाज करते हैं। इस ओपीडी में सेक्स संबंधी मनोरोगों का इलाज होता है। किशोर भी इसमें आ सकते हैं। काउंसिलिंग और जरूरत पड़ने पर दवाओं के माध्यम से इलाज किया जा सकता है।

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