लखनऊ। केजीएमयू में महंगी पैथाेलॉजी जांच के मामले में मुख्यमंत्री के आदेश के भी कोई मायने नहीं हैं। सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रभान यादव की मुख्यमंत्री के पास की गई शिकायत के बाद 30 अगस्त 2022 को केजीएमयू के पास पत्र भेजकर मामले पर रिपोर्ट तलब की गई थी। जांच तो दूर केजीएमयू प्रशासन ने इस मामले में जांच समिति बनाने तक की जरूरत नहीं समझी है।
केजीएमयू में पैथाेलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री और रेडियोडाग्यनोसिस की काफी जांचें निजी एजेंसी के माध्यम से कराई जाती हैं। केजीएमयू और एजेंसी के बीच हुए करार के अनुसार लैब से होने वाली आय दोनों में बराबर बांटी जाती है। सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रभान यादव की शिकायत में केजीएमयू में विभिन्न पैथाेलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी जांच करने वाली एजेंसी में यहीं पर कार्यरत डॉक्टर के भाई की हिस्सेदारी होने का आरोप भी लगाया गया है। शिकायतकर्ता ने शपथपत्र के साथ ही शासन को इसके साक्ष्य भी उपलब्ध कराने का दावा किया है। शिकायत को देखते हुए शासन की ओर से केजीएमयू प्रशासन से इस पर आख्या मांगी गई थी, लेकिन केजीएमयू प्रशासन ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।

मौजूद है संविदा कर्मियों का विकल्प

केजीएमयू के पास जांच के लिए किसी भी निजी लैब के मुकाबले ज्यादा बेहतर विशेषज्ञ मौजूद हैं। इतनी संख्या में डॉक्टर और इंफ्रास्ट्रक्चर किसी अन्य निजी लैब में उपलब्ध नहीं है। इनकी निगरानी में सिर्फ संविदा कर्मियों की संख्या बढ़ाकर भी कम लागत में ज्यादा जांच की जा सकती हैं। ऐसी सूरत में मरीजों को कम कीमत में जांच की सुविधा का लाभ मिल सकेगा।

सरकार से भी मिलता है मशीनों के लिए बजट

केजीएमयू में हर साल करीब 50 करोड़ रुपये के विभिन्न उपकरण खरीदे जाते हैं। कई बार बजट के अलावा विशिष्ट स्वीकृति के आधार पर भी मशीनों के लिए शासन से बजट मिल जाता है। इन उपकरणों में काफी मशीनें विभिन्न जांच से संबंधित होती हैं। साल दर साल ये मशीन आती रहती हैं। प्रशिक्षित स्टाफ के माध्यम से इन मशीन का उपयोग करके सस्ती दर पर मरीजों को जांच का लाभ दिया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।

पत्र के बारे में जानकारी नहीं
केजीएमयू में शासन के सभी निर्देशों का पालन किया जाता है। इस पत्र के बारे में जानकारी मांगी गई है। अगर ऐसा पत्र आया है तो उसका जवाब भी गया होगा।

– डॉ. सुधीर सिंह, प्रवक्ता केजीएमयू