पिछले 10 दिनों में ही नीतीश कुमार चार बार दावत-ए-इफ्तार में शरीक हो चुके हैं। दो बार तो नीतीश ने खुद ये इफ्तार की दावत दी है। नीतीश कुमार अब तक प्रधानमंत्री नहीं बन पाए हैं और 2024 में भी पॉसिबिलिटी जीरो के बराबर है।

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी को लेकर सियासी घमासान मचा है। नीतीश और तेजस्वी के दावत-ए-इफ्तार पर जहां बीजेपी सवाल उठा रही है तो वहीं अब AIMIM चीफ ओवैसी ने भी इफ्तार पार्टी को लेकर दोनों पर हमला बोला है। पटना में कल नीतीश कुमार की पार्टी ने इफ्तार की दावत दी। इससे पहले नीतीश कुमार ने सीएम हाउस में इफ्तार पार्टी दी थी और आज रविवार को राबड़ी देवी के घर तेजस्वी यादव ने इफ्तारी का आयोजन किया है।

ओवैसी ने इफ्तार पार्टी में नीतीश और तेजस्वी के गोल टोपी वाले गेटअप पर तंज कसा है। ओवैसी ने कहा है कि दोनों को फैंसी ड्रेस से फुर्सत ही नहीं मिल रही है। बिहार में दंगाइयों पर एक्शन लेने के बजाए नीतीश और तेजस्वी इफ्तार पार्टी में खजूर खा रहे हैं।

इफ्तार के दौरान टोपी पहन लेने से लोग प्रधानमंत्री बन सकते हैं?

नीतीश कुमार हर साल गोल टोपी पहनते हैं, हर साल इफ्तार की दावत में जाते हैं। पिछले 10 दिनों में ही नीतीश कुमार चार बार दावत-ए-इफ्तार में शरीक हो चुके हैं। दो बार तो नीतीश ने खुद ये इफ्तार की दावत दी है। नीतीश कुमार अब तक प्रधानमंत्री नहीं बन पाए हैं और 2024 में भी पॉसिबिलिटी जीरो के बराबर है।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इनके माथे पर आप कभी टोपी नहीं देखेंगे। जिंदगी में कभी भी इन्होंने इफ्तार नहीं दी, ना ही ये कभी इफ्तार की दावत में गए। फिर भी मोदी, योगी और शाह चुनाव जीतते हैं। ये नेता देश और प्रदेश संभालते हैं। बहुसंख्यक हिंदू इन पर विश्वास करते हैं और मुसलमान भी इनको वोट देते हैं।

क्या आपको इफ्तार का इतिहास मालूम है?
रमजान के महीने में रोजेदार मुसलमानों को बुलाकर उनको दावत देने की परंपरा पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शुरू की थी। दिल्ली में 7 जंतर-मंतर रोड पर पहली बार सरकारी इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था। कहा जाता है कि नेहरू मुसलमानों को बंटवारे के दर्द से उबारना चाहते थे, इसीलिए प्रधानमंत्री ने उनको दावत पर बुलाया था। नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी एक बार इफ्तार की दावत दी, फिर इसे बंद करा दिया। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में प्राइम मिनिस्टर हाउस में फिर से इफ्तार की दावत शुरू हो गई। इंदिरा के समय मुसलमानों के बीच कांग्रेस के आधार खिसकने लगा था।

कहते हैं कि मुसलमानों को साथ बनाए रखने के लिए ही इंदिरा गांधी इफ्तार कराती थीं। धीरे-धीरे मुसलमानों को दावत कराने की ये परंपरा दिल्ली से चलकर प्रदेश की राजधानियों तक पहुंचने लगी। इस तरह इफ्तार मुस्लिम तुष्टिकरण का सबसे बड़ा सरकारी सिंबल बन गया।