London Escorts sunderland escorts 1v1.lol unblocked yohoho 76 https://www.symbaloo.com/mix/yohoho?lang=EN yohoho https://www.symbaloo.com/mix/agariounblockedpvp https://yohoho-io.app/ https://www.symbaloo.com/mix/agariounblockedschool1?lang=EN
Home विशेष समलैंगिकों के विवाह के खिलाफ सरकार का तर्क- शहरी अभिजात वर्ग की...

समलैंगिकों के विवाह के खिलाफ सरकार का तर्क- शहरी अभिजात वर्ग की सोच पूरे समाज पर नहीं थोप सकते

सरकार ने आवेदन में कहा है कि ‘सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती हैं बल्कि ये शहरी अभिजात वर्ग के विचारों को ही दर्शाती हैं। इसे देश के विभिन्न वर्गों और पूरे देश के नागरिकों के विचार नहीं माने जा सकते।’

समलैंगिक विवाह के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नया आवेदन दायर किया है। इस आवेदन में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर विचार करने पर सवाल उठाए हैं। केंद्र ने कहा है कि शादी एक सामाजिक संस्था है और इस पर किसी नए अधिकार के सृजन या संबंध को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ विधायिका के पास है और यह न्यायपालिका के अधिकारक्षेत्र में नहीं है।

केंद्र ने समलैंगिक विवाह को लेकर दिए ये तर्क
केंद्र ने आवेदन में ये भी कहा है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का व्यापक असर होगा और सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती हैं बल्कि ये शहरी अभिजात वर्ग के विचारों को ही दर्शाती हैं। इसे देश के विभिन्न वर्गों और पूरे देश के नागरिकों के विचार नहीं माने जा सकते।

आवेदन में सरकार ने कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं की विचारणीयता पर विचार करे कि क्या इन्हें सुना जा सकता है या नहीं। कानून सिर्फ विधायिका द्वारा बनाया जा सकता है, न्यायपालिका द्वारा नहीं। याचिकाकर्ताओं ने एक नई विवाह संस्था बनाने की मांग की है, जो मौजूदा कानूनों की अवधारणा से अलग है। विवाह संस्था को सिर्फ सक्षम विधायिका द्वारा मान्यता दी जा सकती है।’

सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई हैं कई याचिकाएं
बता दें कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 15 याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने इन याचिकाओं को पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट 18 अप्रैल को इन पर सुनवाई कर सकता है।

Exit mobile version