चीन का विकासशील देश का दर्जा खत्म कराने की अमेरिका की कोशिश को दोनों देशों के बीच बढ़ती तल्खी का नतीजा कहा जा सकता है। चीन आर्थिक और रणनीतिक, दोनों स्तर पर अमेरिका को लगातार चुनौती दे रहा है। जवाब में अमेरिका भी चीन पर लगाम लगाने की हर जुगत में लगा है। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी संसद में चीन को विकसित देश का दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर तत्काल कोई बड़ा असर नहीं होगा, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम होंगे। चीन के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज लेना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ जैसी संस्थाएं विकसित देशों को बहुत कम कर्ज देती हैं। आईएमएफ के नियमों के अनुसार वह सिर्फ संकट में फंसे देशों को कर्ज देता है। वर्ल्ड बैंक आम तौर पर प्रोजेक्ट के लिए कर्ज देता है। इसके अलावा चीन को आयात-निर्यात में मिलने वाली अनेक रियायतें भी कम हो जाएंगी।
ताजा घटनाक्रम में अमेरिकी सीनेट की फॉरेन रिलेशंस कमेटी ने चीन का विकासशील देश का दर्जा खत्म करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। अमेरिकी संसद के निचले सदन, प्रतिनिधि सभा से इस विधेयक को मार्च में ही मंजूरी मिल चुकी थी। इस विधेयक में अमेरिका के विदेश मंत्री से कहा गया है कि वे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन का दर्जा विकासशील देश से बदलकर विकसित देश करने की मुहिम चलाएं।
क्या है अमेरिका का तर्क
इस मसले पर अमेरिका के सत्तारूढ़ डेमोक्रेट और विपक्षी रिपब्लिकन, दोनों दलों के सांसद साथ हैं। उनका कहना है कि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, उसके पास विशाल सैन्य शक्ति है और वह अनेक देशों में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। इसलिए उसे विकासशील देश नहीं कहा जा सकता है। अमेरिकी सांसदों का यह आरोप भी है कि चीन अंतरराष्ट्रीय संगठनों से कम ब्याज पर कर्ज लेकर उसका इस्तेमाल बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के तहत दूसरे देशों के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की फाइनेंसिंग में करता है। इसी का नतीजा है कि वे देश कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं।
अमेरिकी कांग्रेस के इस कदम के जवाब में चीन ने कहा है कि वह एक विकासशील देश है या नहीं, यह अमेरिका तय नहीं कर सकता। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि चीन को यह दर्जा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक हासिल है, अमेरिकी कांग्रेस के एक विधेयक से इसे खारिज नहीं किया जा सकता है। ऐसा नहीं कि चीन के विकास की सफलता को स्वीकार करते हुए अमेरिका हमें विकसित देश का दर्जा देना चाहता है, बल्कि वह चीन के विकास को रोकना चाहता है।