हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ‘आदिपुरुष’ के फिल्म निर्माताओं से कहा है कि वह ‘एक विशेष धर्म’ (हिंदुओं) की सहिष्णुता की परीक्षा क्यों ले रहे हैं।
‘आदिपुरुष’ मेकर्स पर गुस्सा निकालने वालों में अब सिर्फ आम लोग ही नहीं बल्कि भारत का न्यायालय भी शामिल हो चुका है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ‘आदिपुरुष’ फिल्म के निर्माताओं को आड़े हाथों लेते हुए पूछा कि क्या फिल्म में डिस्क्लेमर डालने वाले लोग देशवासियों को ‘बुद्धिहीन’ मानते हैं। कोर्ट ने सवाल किया कि ‘आदिपुरुष’ के निर्माताओं द्वारा एक धर्म की सहिष्णुता का परीक्षण क्यों किया जा रहा है। फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही अदालत ने कहा, “फिल्म में डायलॉग का तरीका एक बड़ा मुद्दा है। रामायण हमारे लिए आदर्श है। लोग घर से निकलने से पहले रामचरितमानस पढ़ते हैं।”
सेंसर बोर्ड को भी लगाई फटकार
तुलसीदार द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामायण’ की कथा पर आधारित ‘आदिपुरुष’ अपने डायलॉग, बोलचाल की भाषा और कुछ किरदारों को लेकर आलोचना का शिकार हो रही है। सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर ट्रोलिंग और रिएक्शन आने के बाद ‘आदिपुरुष’ निर्माताओं ने फिल्म के संवादों में बदलाव किया है लेकिन अब भी दर्शकों में आक्रोश कम नहीं हुआ। इस बीच, इलाहाबाद HC की लखनऊ बेंच ने इस मामले पर सुनवाई में सेंसर बोर्ड को फटकार लगाई है।
‘आदिपुरुष’ पर क्या बोले न्यायमूर्ति
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने कहा, “जो अच्छे लोग हैं उन्हें दबा देना चाहिए? क्या ऐसा है? यह अच्छा है कि यह एक ऐसे धर्म के बारे में, जिसके मानने वालों ने कोई सार्वजनिक समस्या पैदा नहीं की। हमें आभारी होना चाहिए। क्योंकि हमने समाचारों में देखा कि कुछ लोगों ने सिनेमा हॉल में जाकर केवल हॉल बंद करने के लिए दबाव डाला, वे कुछ और भी कर सकते थे।” इसके आगे न्यायधीश ने कहा कि ‘आदिपुरुष’ को सर्टिफिकेट देने से पहले सर्टिफिकेशन को कुछ सोचना चाहिए था।
क्या हिंदुओं का टॉलरेंस टेस्ट लिया जा रहा?
इसके आगे पीठ ने कहा, “अगर हम इस मुद्दे पर भी अपनी आंखें बंद कर लें, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इस धर्म के लोग बहुत सहिष्णु हैं, तो क्या इसकी परीक्षा ली जाएगी?, यहां पीआईएल याचिकाओं में मुद्दा यह है कि जिस कथा पर फिल्म बनाई गई है, उसमें कुछ ग्रंथ हैं जो पूरे धर्म के लिए अनुकरणीय हैं और पूजा के योग्य हैं।”