सोवियत संघ के पतन के साथ दुनिया के दो ध्रुवों के बीच चले आ रहे शीतयुद्ध का भी लगभग अंत हो गया था. जापानी मूल के अमेरिकी विद्वान फ्रांसिस फुकुयामा ने तो इसे इतिहास का ही अंत कह डाला था, क्योंकि उनकी नज़र में इतिहास का मतलब प्रमुख तौर पर युद्धों से था. प्रमुख शक्तियों के बीच युद्ध.
पश्चिमी, खासकर यूरोपीय देशों, में रूस को हमेशा से पिछड़ा या बर्बर माना जाता है. रूस के शासक भी अपने को पिछड़ा मानते थे और विकसित दिखने या उनकी बराबरी करने में उनकी नकल करते थे. रूस के पश्चिमी छोर पर बसे सेंट पीटर्सबर्ग का स्थापत्य इसी को दर्शाता है.
बोरिस येल्तसिन ने जब व्लादिमिर पुतिन को पहले रूस का प्रधानमंत्री और फिर अपनी कुर्सी देकर राष्ट्रपति चुना, तो उन्हें उम्मीद थी कि देश में लोकतांत्रिक माहौल दुरस्त होगा. जो वह न कर सके, उसे पुतिन पूरा करेंगे. लड़ाई-झगड़ों से दूरी बनाकर चलते हुए नया रूस आर्थिक प्रगति करेगा, लेकिन पुतिन की योजना में कई ‘डायवर्ज़न्स’ थे. ये डायवर्ज़न्स अतीत के अनुभवों से पैदा हुए थे. वे रूस को फिर सोवियत संघ वाला महान बनाना चाहते थे.पुतिन का सपना सोवियत संघ की तरह महान और उससे पहले महान रूसी साम्राज्य के गौरव को फिर से हासिल करना है. और खुद को रूस का ज़ार जैसा शासक बनाना चाहते हैं. इसकी पहली झलक तब मिली, जब उन्होंने रूस के नए राष्ट्रगान को सोवियत संघ की तर्ज पर ही लिखवाया, अतीत के गौरव वाली उसे नई धुन भी दी गई थी.
सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी KGB से अपना करियर शुरू करने वाले पुतिन से एक तरह से रक्त और लौह की नीति अपनाई. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर में पड़ोसियों पर. वे पड़ोसी, जो कुछ ही समय पहले यूनाइटेड सोवियत संघ का भाग थे और उनमें से कुछ अब स्वतंत्र होकर कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स (CIS) का हिस्सा थे.
पहली बार हुए धमाकों के समय वह प्रधानमंत्री थे, तो दूसरी बार राष्ट्रपति बन चुके थे. चेचन्या के अलगाववादियों के ख़िलाफ़ उनकी सख्त नीति और जीत की गिनती उनकी चार प्रमुख सफलताओं में नहीं की जा रही है. यहां सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस के एक्शन्स और उनकी सफलता की बात है, लेकिन उससे पहले घरेलू स्तर की इन घटनाओं ने पुतिन को अपनी छवि निर्मित करने में मदद की. चेचन्या में अलगाववादियों के ऊपर मिली जीत ने घरेलू माहौल बना दिया था कि पुतिन देश के दुश्मनों से निपटने के लिए पर्याप्त हैं.