ऐसे आया बुलडोजर जस्टिस फैसला,’ ये तेरा घर, ये मेरा घर ‘ प्रदीप से लेकर लॉर्ड डेनिंग तक, 44 दिनों की मशक्कत;

    बुलडोजर जस्टिस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया. वैसे तो ये फैसला 95 पेज का है लेकिन इस फैसले के पीछे जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ की 44 दिन की कड़ी मशक्कत छिपी है. जस्टिस गवई ने ये फैसला लिखा है. जिसके लिए उन्होंने लगातार अपने साथी जज जस्टिस विश्वनाथन से लगातार विचार विमर्श किया. सुप्रीम कोर्ट सूत्रों ने बताया कि दोनों जजों ने ये तय किया था कि चूंकि ये मामला गंभीर है और इसमें आम लोगों के घर, आरोपी के अधिकार, शक्ति का विभाजन, कानून का शासन, राइट टू शेल्टर और सरकारी अफसरों की जवाबदेही जैसे बड़े मुद्दे शामिल हैं.

    फैसले के लिए तलाशी कविता क्यों खास

    इसी दौरान दोनों जजों ने तय किया कि चूंकि ये मामला आम लोगों का है जो ज्यादातर गरीब हैं तो इस फैसले के जरिए उनसे सीधे जुड़ने की जरूरत है, ताकि वो इस फैसले को आसानी से समझ सकें. सूत्रों के मुताबिक इसके बाद फैसला लिखने की प्रक्रिया में जस्टिस गवई ने इंटरनेट की मदद ली और ‘ शेल्टर ‘ शब्द को लेकर कविता तलाशी. इसी दौरान मशहूर कवि प्रदीप की कविता मिली जो इस मामले में घर को लेकर सटीक बैठती है. जस्टिस गवई ने अपने फैसले में इस कविता से ही शुरूआत की.

    ” अपना घर हो, अपना आंगन हो,
    इस ख्वाब में हर कोई जीता है.
    इंसान के दिल की ये चाहत है.
    दक एक घर का सपना कभी न छूटे.”

    लॉर्ड डेनिंग का भी किया जिक्र

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