प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को, एक सांकेतिक यात्रा के तौर पर ज्यादा देखा जाना चाहिए. इसमें खोने-पाने से ज्यादा पूरी दुनिया के लिए संदेश छिपा है. यह संदेश कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे पुराने लोकतंत्र, दोनों में बहुत बड़े स्तर पर मतभेद नहीं हैं. अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए भी दोस्ती निभाई जा सकती है, यह इस मुलाकात का सार है. भारत और अमेरिका के रिश्ते पहले से बेहतर हैं. यह आगे और भी मजबूत होते दिखाई देंगे.अमेरिका जाने से पहले पीएम मोदी भी यह अच्छी तरह से जानते थे कि ट्रंप जिस राष्ट्रहित और MAGA के नारे के साथ अमेरिका की राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचे है, वह इससे अलग नहीं हो जाएंगे. ट्रंप भी इससे वाकिफ थे कि मोदी भी राष्ट्र प्रथम की बात करते हैं, ऐसे में वह भी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, वह भी सिर्फ दोस्ती के लिए. दोनों अपनी सीमाएं भी जानते हैं. इस मुलाकात से दुनिया में एक सबसे बड़ा मैसेज गया है, वह यह कि दुनिया की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकतों में दोस्ती है. यह तानाशाही ताकतों के सामने बड़ी चुनौती है कि अभी इस धरती पर लोकतंत्र कमजोर नहीं हुआ है. 21वीं सदी में तानाशाही ताकतों को यह सिग्नल जाना ही चाहिए कि लोकतंत्र आज भी इस धरती का पहला और आखिरी विकल्प है. और यह और मजबूत होगा. यह मैसेज जो गया है, बहुत बड़ी चीज है.