कुंभ मेला भारत में आयोजित होने वाला एक विश्वप्रसिद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक महोत्सव है. यह मेला हर 12 साल में एक बार चार प्रमुख तीर्थ स्थलों- प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है, जहां देश-विदेश से हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लाखों श्रद्धालु पवित्र नदी में स्नान करते हैं और सुख शांति की कामना करते हैं. आपको बता दें कि इस बार महाकुंभ मेला (Mahakumbh mela kab hai) 13 जनवरी से प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा है, जो 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा. कुंभ मेले के आयोजन स्थल को लेकर कुछ लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर यह इन्हीं 4 शहरों में ही क्यों लगता है? तो आपको बता दें इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसके बारे में आगे आर्टिकल आपको बताया जा रहा है.

कुंभ मेला का पौराणिक महत्व – Mythological significance of Kumbh Mela

कुंभ मेला “सागर मंथन” से जुड़ा हुआ है. पुराणों के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने मिलकर सागर मंथन किया, तो अमृत कलश (कुंभ) प्रकट हुआ, जिसको लेकर देवता और दैत्यों के बीच युद्ध शुरू हो गया. इस युद्ध के दौरान अमृत कलश को देवताओं ने अपने कब्जे में ले लिया.

मान्यता है कि इस दौरान अमृत कलश की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरी थीं वो है प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक. यही कारण है ये चार स्थान कुंभ मेला के आयोजन स्थल बने और यहां श्रद्धालु पवित्र स्नान करने आते हैं ताकि वे अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकें और पुण्य कमा सकें.

आपको बता दें कि यह मेला भारतीय धार्मिक परंपरा और आस्थ का प्रतीक है, जिसमें विशेष रूप से “स्नान” की महिमा का वर्णन किया जाता है. कहा जाता है कि जब भक्त पवित्र नदियों (गंगा, यमुना, गोदावरी और शिप्रा ) में स्नान करते हैं, तो वे न केवल शारीरिक रूप से शुद्ध होते हैं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि भी प्राप्त करते हैं.

यूनेस्को लिस्ट में कुंभ मेला – Kumbh Mela in UNESCO list

यूनेस्को ने कुंभ मेला को 2017 में अपनी “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर” की सूची में शामिल किया. यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल होने से कुंभ मेला का महत्व और भी बढ़ गया है और यह सुनिश्चित करता है कि यह अद्भुत धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रहेगी.

यहां पर आयोजित होने वाले विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, साधुओं और संतों के प्रवचन, और परंपरागत रीति-रिवाज भारतीय संस्कृति की जड़ें मजबूत करते हैं. इसलिए, कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति का जीवंत प्रतीक भी है, जिसे यूनेस्को जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन ने पहचान दी है.