पिछले एक साल में चाहे रूस से सस्ते तेल के आयात का मामला हो या पाकिस्तान का मसला या फिर लद्दाख में चीन का रुख, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विदेश नीति, कूटनीति और देश की साख को लेकर बेहतरीन काम किया है। लेकिन कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी की बात पर कूटनीति के जानकारों को विदेश सचिव से विदेश मंत्री बने जयशंकर की बात जरा कम रास आ रही है। पिछले साल ही विदेश सेवा से रिटायर हुए अवकाश प्राप्त सूत्र का कहना है कि विदेश मंत्री कहते-कहते चूक गए। विदेश नीति के खांचे में बात करते तो ठीक था, लेकिन वह राजनीतिक नरेशन (अवधारणा) ही फिट करते नजर आए।
पूर्व विदेश सचिव शशांक ने हालांकि विदेश मंत्री एस जयशंकर से कई मामलों में सहमति जताई है, लेकिन भारत और चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिकों की एतिहासिक तैनाती को लेकर उन्होंने भी सवालिया निशान लगाया है। शशांक का कहना है कि सफल विदेश नीति और कूटनीति तो सीमा पर सैनिकों की तैनाती को कम करती है। शांति की स्थापना का रास्ता बनाती है। युद्ध और टकराव को पीछे धकेलने का काम करती है। जबकि यहां हमारे विदेश मंत्री सीमा पर अब तक की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती का हवाला देकर बता रहे हैं कि भारत चीन से युद्ध करने के लिए तैयार है।
आखिर क्या है मामला और कूटनीति के जानकार क्यों कर रहे हैं खारिज
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि मोदी सरकार चीन का नाम लेने से डरती है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राहुल गांधी के इस राजनीतिक हमले का आक्रामक लहजे में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि चीन की सीमा पर आज हमारे पास इतिहास की सबसे बड़ी तैनाती है और मैं इसमें चीन का नाम ले रहा हूं। अगर हम रक्षात्मक हो रहे थे, तो भारतीय सेना को एलएसी पर किसने भेजा? राहुल गांधी ने उन्हें नहीं भेजा, नरेंद्र मोदी ने भेजा। जयशंकर ने आगे कहा कि आज चीन सीमा पर शांतिकाल में हमारे इतिहास की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती है। उन्होंने खर्च के बारे में बात की कि सीमा पर आधारभूत संरचना खर्च को मौजूदा सरकार ने पांच गुना तक बढ़ाया है।