सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के एक हत्या मामले में दोषियों की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा है कि किसी भी मामले में दोषसिद्धि के लिए गवाहों की संख्या नहीं बल्कि उनकी गुणवत्ता मायने रखती है। दरअसल, कोर्ट 2007 में उत्तर प्रदेश में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या मामले में सुनवाई कर रहा था, जिसमें तीन दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
इस मामले में चार दोषियों ने 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। दरअसल, हाईकोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि दोषियों में एक अजय की मृत्यु हो चुकी है।
मृतक की बेटी ने दी थी गवाई
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि संबंधित मामले में मृतक में से एक की दो बेटियों ने हमलावरों को हत्या करते देखा था। उनमें से एक को अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में पेश किया गया था। कोर्ट ने कहा, मृतक की बेटी भी घटना में घायल हो गई थी, उसे जानलेवा चोटें आईं थीं और वह पूरी तरह विश्वसनीय गवाह थी।
गाजियाबाद के मुरादनगर में हुई थी हत्या
मामले के तहत गाजियाबाद के मुरादनगर में एक व्यक्ति, उसकी पत्नी, उसके बेटे और दामाद की उनके घर पर हत्या कर दी गई थी। सभी की गर्दन को धारदार हथियार से काटा गया गया था। पुलिस ने कहा था कि मृतक की एक बेटी भी वहां घायल हालत में मिली थी, उसने मुकेश, ब्रज पाल सिंह, रवि और अजय को तलवार और अन्य हथियारों से उसके माता-पिता पर हमला करते देखा था।