दिल्ली नगर निगम के मेयर के चुनाव के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से निगम चुनावों को लेकर नई परंपरा की नींव पड़ सकती है। यह परंपरा मेयर के चुनाव में नामित सदस्यों के वोट करने और पीठासीन अधिकारी के चुनाव कराने के संदर्भ में अधिकारों से जुड़ी हो सकती है। इससे विभिन्न निगमों में समय-समय पर आने वाले गतिरोध से बचा जा सकेगा और निगम की चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता आ सकेगी।

दरअसल, मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी की उम्मीद शैली ओबेरॉय ने सर्वोच्च न्यायालय से इस बिंदु पर ही स्पष्ट निर्देश देने की मांग की है कि मेयर चुनाव में नामित सदस्य वोट दे सकते हैं, या नहीं। चूंकि, इस संदर्भ में सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने पहली नजर में ही एल्डर मैन को वोटिंग का अधिकार नहीं होने की बात मौखिक चर्चा में (निर्णय के हिस्से के रूप में नहीं) कह दी है, ऐसे में माना जा रहा है कि यह मामला आम आदमी पार्टी के पक्ष में जा सकता है।

लेकिन भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने अमर उजाला को बताया कि यह मामला इतना स्पष्ट नहीं है। यदि निगम के नियमों में नामित सदस्यों को लेकर इतना ही स्पष्ट आदेश होता, तो विवाद की कोई गुंजाइश ही न होती। इस मामले में नियम अस्पष्ट हैं जिसके कारण नामित सदस्यों को कभी मेयर चुनाव में हिस्सा लेने की अनुमति मिल गई तो कभी नहीं मिली। चूंकि इस संदर्भ में हाई कोर्ट का 2016 का एक निर्णय नजीर की तरह काम कर रहा है, जब तक सर्वोच्च न्यायालय इस निर्णय से अलग कोई राय व्यक्त नहीं करता, इसे एक उदाहरण के रूप में अनुशरण किया जा सकता है।

निगम की पीठासीन अधिकारी सत्या शर्मा मेयर के साथ-साथ डिप्टी मेयर और स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों के चुनाव कराने पर भी अड़ी थीं, इस मुद्दे पर भी सर्वोच्च न्यायालय से स्पष्टता आ सकती है। निगम के मामलों के जानकार जगदीश ममगाई ने कहा कि इस संदर्भ में नियम बिल्कुल स्पष्ट है। पीठासीन अधिकारी केवल मेयर का चुनाव कराने के लिए अधिकृत है। चुना हुआ मेयर अपनी सुविधा से डिप्टी मेयर और स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन का चुनाव एक साथ या अलग-अलग करवा सकता है।