अगर एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने के बाद दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाता है, तो शिकायत दर्ज कराने वाले पीड़ित को शासन द्वारा दिए गए मुआवजे को राजकीय कोष में जमा करना होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अगर एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने के बाद दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाता है, तो शिकायत दर्ज कराने वाले पीड़ित को शासन द्वारा दिए गए मुआवजे को राजकीय कोष में जमा करना होगा। बगैर मुआवजा जमा किए संबंधित न्यायालय द्वारा समझौता सत्यापित नहीं किया जाएगा। अदालत ने कहा, समाज कल्याण विभाग से प्राप्त धन जमा करना अनिवार्य होगा और पार्टियों के बीच किसी भी समझौते के लिए यह शर्त होगी।

दरअसल, झब्बू दुबे और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर एक आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कहा, जब पक्षों के बीच समझौता हो जाता है, तो पीड़ित को कोई खतरा नहीं होता है। ऐसे में मुआवजे के रूप में दिए गए पैसे को पीड़ित को रखने का कोई औचित्य नहीं हो सकता है। पीड़ित को उस पैसे को राज्य सरकार को वापस करना चाहिए। यह निर्दोष करदाताओं की गाढ़ी कमाई है।

SC/ST एक्ट में दर्ज मामलों में मिलता है मुआवजा
गौरतलब है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत मामला दर्ज कराने पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के पीड़ित को राज्य सरकार के समाज कल्याण विभाग की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। अदालत ने निर्देश दिया कि जहां पीड़ित और अभियुक्त के बीच समझौता हुआ था, उसे संबंधित सत्र न्यायाधीश, एससी/एसटी अधिनियम द्वारा सत्यापित किया जाएगा, इसमें शीर्ष अदालत द्वारा गणना किए गए कारकों को ध्यान में रखा जाएगा।

संतुष्ट होने के बाद संबंधित सत्र न्यायाधीश पीड़ित को 10 दिनों के भीतर राज्य सरकार के समाज कल्याण विभाग से प्राप्त पूरी राशि वापस जमा करने के लिए कहेगा और फिर अनुबंधों की पुष्टि करते हुए उपयुक्त आदेश पारित करेगा।