गोरखपुर में असलहों का रोग पुराना है। इश्किया फिल्म का एक बोल तो याद ही होगा, ‘जिसमें गोरखपुर का जिक्र होते ही एक बच्चा बोलता है कि यहां पर बच्चे होश संभालने से पहले ही तमंचा चलाना सीख लेते हैं’। अगर पुलिस ने असलहा तस्करों को नहीं दबोचा तो गोरखपुर के बच्चों के हाथ तमंचे लगेंगे और गोरखपुर का नाम फिर बदनाम होगा।

हाल के दिनों में कई नाबालिग असलहों के शौक के चक्कर में नकली असलहे के साथ फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल कर चुके हैं। कई मामलों में 18 व 19 की उम्र के युवकों को जेल भी भेजा गया।

जानकारी के मुताबिक, एडीजी अखिल कुमार के आदेश पर दो साल पहले अवैध असलहों के खिलाफ अभियान चला। इसे ऑपरेशन तमंचा का नाम दिया गया। इसका असर भी रहा। कई बदमाश दबोचे गए और 2022 में गोरखपुर जोन में 4,132 असलहे भी बरामद कर लिए गए।

असलहा पकड़े जाने के बाद पुलिस ने दवा किया कि तस्करों के नेटवर्क को खंगाला जा रहा है। जल्द ही तस्करों को भी दबोचा जाएगा। लेकिन, ऐसा होता कभी नहीं। इसे गंभीरता से लेते हुए नए साल की शुरुआत होते ही एडीजी ने ऑपरेशन तमंचा- 2 चलाने का आदेश दिया।

इसका मकसद है कि असलहा तस्करों को पकड़ा जाए, ताकि अवैध असलहे जिले में आ ही ना पाए, लेकिन इसकी भी शुरुआत में सिर्फ असलहों के इस्तेमाल करने वाले ही दबोचे जा रहे हैं।

पश्चिम बंगाल के बदमाश भी पकड़े गए फिर भी राज नहीं खुला

31 दिसंबर 2021 को कैंट पुलिस ने पश्चिम बंगाल के दो युवकों को अवैध हथियारों के साथ गिरफ्तार किया। पूछताछ में पता चला है कि डकैती के मामले में कोलकाता जेल में बंद जय गोविंद चौधरी के संपर्क में आने के बाद बदमाशों को गोरखपुर में असलहा मिलने की जानकारी हुई थी। दोनों ने बताया कि वे बड़हलगंज के संसारपार निवासी अविनाश शर्मा उर्फ पिंटू के घर पर रुके थे। आरोपी पश्चिम बंगाल के चुनरी पाडा निवासी गोविंदा बांसफोर और वहीं के सूरज यादव ने पुलिस को कई जानकारी दी थी, लेकिन आज तक पुलिस इस पूरे प्रकरण का पर्दाफाश नहीं कर सकी।

पहले आठ सौ से 1,500 में बिकते थे तमंचे, अब 15 हजार तक
बात अगर, 2015 से पहले की करी जाए तो तमंचा आठ सौ से 15 सौ में बिकते थे। गोरखपुर में बिहार से असलहा लाकर बेचा जाता था। पुलिस की सख्ती नहीं थी तो हर मुहल्ले में आसानी से मिल भी जाता था, लेकिन अब पुलिस की सख्ती बढ़ी है तो अब 15 हजार रुपये तक इसका दाम पहुंच गया। बेलघाट में पकड़े गए युवकों ने बताया था कि वह 12 हजार रुपये में तमंचा आजमगढ़ से लाते थे और फिर यहां पर 15 हजार रुपये में बेच दिया करते थे।

बिहार और आजमगढ़ से आते हैं तमंचे
गोरखपुर में बिहार और आजमगढ़ से तमंचों की खेप आती है। पुलिस प्रशासन की सख्ती बढ़ने के बाद अब बड़ी संख्या में एक साथ असलहे नहीं लाए जाते हैं। एक बार में दो या तीन असलहे ही लेकर लोग आते हैं और फिर उसे बेच दिया जाता है। इसकी पुष्टि हाल के दिनों में पकड़े गए लोगों से हो चुकी है। लेकिन, इस पर पुलिस की सख्ती नहीं हो पाती, तस्कर न दबोचे जाने की वजह से आवक कम तो हुई, लेकिन खत्म नहीं हो पाई।v