दिनेश चौधरी ने कहा कि गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) असंवेदनशील हो गया है। एकतरफा बातें कर रहा है। विकास का तो हम भी स्वागत करते हैं, लेकिन हमारा क्या होगा? हम कहां जाएं?

नया गोरखपुर शहर बसाने की राह में जमीन का रोड़ा अटक गया है। जीडीए ने नए शहर के लिए जिन गांवों को चुना है वहां के किसान अपनी जमीन देने के लिए तैयार नहीं हैं। अधिकतर किसानों का कहना है कि खेती ही हमारी आजीविका है। यदि यही नहीं रही तो हम करेंगे क्या? जीवन कैसे गुजारेंगे? कई किसानों का कहना है कि जीडीए जमीन का उचित मुआवजा नहीं दे रहा है। बाजार भाव पर ही जमीन दे पाएंगे। यदि जबरदस्ती हुई तो आंदोलन करेंगे। फिलहाल जीडीए की टीमें गांवों में जाकर किसानों को समझाने का काम कर रही हैं।

कुसम्ही क्षेत्र के भैंसहा गांव के चौराहे पर स्थित चाय की दुकान के बाहर दोपहर 3:25 बजे कुछ लोग नए शहर के लिए जमीन देने पर चर्चा कर रहे थे। गांव के दिनेश चौधरी ने कहा कि गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) असंवेदनशील हो गया है। एकतरफा बातें कर रहा है। विकास का तो हम भी स्वागत करते हैं, लेकिन हमारा क्या होगा? हम कहां जाएं? सिक्के के दूसरे पहलू को भी देखा जाना चाहिए। हमारी जमीन ले लेंगे तो परिवार कैसे पालेंगे? जीविकोपार्जन का एक मात्र सहारा खेती ही तो है।

इसी बीच तमतमाए हुए मुन्ना ने कहा कि जीडीए के अधिकारियों को गरीबों की चिंता कहां है। गरीब जीएं या मरें। सरकारी महकमा सिर्फ अपना राग अलाप रहा है। जिस जमीन की कीमत करोड़ों में है, उसे आधी रकम भी नहीं दी जा रही है। ऐसे में कोई अपनी जमीन कैसे दे सकता है। जबरदस्ती की गई तो आंदोलन किया जाएगा।

ऐसा दृश्य आजकल लगभग हर उस गांव में देखने को मिल रहा है, जिन गांवों का चयन जीडीए ने नए शहर के लिए किया है। रुद्रापुरम, बहरामपुर, अराजी, बसडीला, जगदीशपुर, सिसवा, बालापार सहित ऐसे 60 गांव हैं जहां पिछले एक सप्ताह से किसान एकत्रित होकर नया गोरखपुर के लिए जमीन अधिग्रहण के लिए जीडीए की शुरू की गई गतिविधियों पर चर्चा कर रहे हैं। सभी को चिंता है कि जीडीए बाजार दर से कम पर उनकी जमीन अधिगृहीत कर सकता है।

उधर, नया गोरखपुर के लिए जमीन अधिगृहीत करने के लिए जीडीए की टीम 60 गांवों में एक-एक कर बैठकें कर रही है। हर गांव में दो बार जाकर बैठक करने का लक्ष्य तय किया गया है। बैठकों के दौरान प्राधिकरण के अधिकारी विकास के लिए नया गोरखपुर की जरूरत को बताने के साथ सर्किल रेट से चार गुना दाम पर जमीन देने के लिए किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। लेकिन जवाब में उन्हें न ही सुनने को मिल रहा है। किसान जमीन देने के लिए राजी नहीं हैं। कोई तय मुआवजे को कम बता रहा है, तो किसी का कहना है कि उनके परिवार का जीविकोपार्जन खेती-किसानी से होता है। जमीन दे देंगे तो बेरोजगार हो जाएंगे। घर में चूल्हा तक नहीं जल पाएगा।

किसानों की दलील है कि 2016 के बाद से जिले में जमीनों का सर्किल रेट नहीं बढ़ा, जबकि वर्तमान में बाजार दर कई गुना बढ़ गई है। प्राधिकरण जो मुआवजा दे रहा है वह चार गुना दिए जाने के बाद भी वर्तमान बाजार दर से आधे से भी कम है।