लखनऊ। भूखंड दिलाने के नाम पर ठगने और एलडीए की छवि खराब करने वाले भ्रष्टाचारी बाबू मुसाफिर सिंह और अजय प्रताप वर्मा को बर्खास्त कर दिया गया है। वीसी इंद्रमणि त्रिपाठी ने इसका आदेश शुक्रवार को जारी किया। दोनों भ्रष्टाचार के आरोप में दो साल से अधिक समय से निलंबित चल रहे थे। अपर सचिव ज्ञानेन्द्र वर्मा ने बताया कि कनिष्ठ लिपिक अजय वर्मा ने वास्तुखंड के भवन3/710 के निरस्तीकरण की सूचना और भवन की पत्रावली चार्ज के साथ नहीं दी। उसने एलडीए को आर्थिक नुकसान भी पहुंचाया। 13 भूखंडों की जाली दस्तावेज पर रजिस्ट्री कराने में भी अजय का नाम आया था। कंप्यूटर में रिकॉर्ड चढ़ाने के लिए बिना अनुमति उसकी आईडी का इस्तेमाल हुआ। उसके खिलाफ एफआईआर भी हुई थी। आरोपों की जांच के दौरान अजय तैनाती स्थल नजूल विभाग से गायब हो गया।

उधर, विधि अनुभाग में कनिष्ठ लिपिक मुसाफिर सिंह ने एक भूखंड का समायोजन कराकर रजिस्ट्री कराने के नाम पर बैजनाथ से 55 लाख व उसके साथी राकेश चंद्र से 45 लाख लिए थे। एक साल बाद भी उसने समायोजन नहीं कराया और पैसा लौटाने से भी इनकार कर दिया। इससे मानसिक व आर्थिक परेशानी के चलते बैजनाथ ने ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली थी। मुसाफिर सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया था। इसके बाद से ही वह निलंबित था। अधिकारियों का कहना है कि निलंबन के बाद अजय एलडीए में नहीं देखा गया। उधर, मुसाफिर ने पूरा प्रयास किया कि नौकरी पर बहाली मिल जाए। इससे पहले पूर्व वीसी प्रभु एन सिंह ने भ्रष्टाचार के मामले में भूखंडों के फर्जीवाड़े में कुख्यात मुक्तेश्वर नाथ ओेझा और काशीनाथ राम को बर्खास्त किया था।