Gyanvapi Case ज्ञानवापी के सर्वे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण टीम एक खास तकनीक से सर्वे कर रही है। इस तकनीक का नाम है ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार यानी जीपीआर। एएसआई की टीम का पूरा ध्यान इमारत के आर्किटेक्चर और अभिलेखों की तलाश पर होगा। परिसर को किसी भी तरह की हानि न पहुंचे इसके लिए खास ध्यान रखा जा रहा है।

अत्याधुनिक तकनीक, यंत्रों और विशेषज्ञों की मदद से एएसआइ (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) की टीम ज्ञानवापी के रहस्यों का पता लगाएगी। ज्ञानवापी परिसर के सर्वे में ग्राउंड-पेनिट्रेटिंग रडार (जीपीआर) प्रणाली समेत अन्य अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाएगा।

परिसर को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। बीएचयू के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अशोक सिंह ने बताया कि जीपीआर प्रणाली से भूगर्भ में 20 मीटर नीचे तक दबे रहस्यों का पता लगाया जा सकता है।

क्षति से बचाने को कार्बन डेटिंग की मनाही

आइआइटी बीएचयू के मैटेरियल साइंस इंजीनियरिंग में सहायक प्रोफेसर डाक्टर चंदन उपाध्याय बताते हैं कि किसी भी वस्तु की आयु ज्ञात करने के लिए कार्बन डेटिंग की जाती है। इसमें उस वस्तु का थोड़ा सा हिस्सा खुरच कर या काट कर प्रयोगशाला में ले जाना होता है। वहां उस पदार्थ में कार्बन के आइसोटोप, कार्बन-14 की मात्रा के आधार पर आयु ज्ञात की जाती है।

कार्बन-14 एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है, जिसकी विकिरण आयु 5700 वर्ष है। यानी 5700 वर्षों में उसमें कार्बन-14 की मात्रा घटकर आधी रह जाएगी। कार्बन-14 की उपस्थित मात्रा के आधार पर पदार्थ की आयु की गणना की जाती है। इस मामले में न्यायालय का यह निर्णय उचित है कि कार्बन डेटिंग से शिवलिंग को क्षति पहुंच सकती है।

यूवी इमेजिंग, एक्स रे चित्रण व पराश्रव्य ध्वनि छायांकन

आइआइटी बीएचयू के मैटेरियल साइंस इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर डा. अखिलेश सिंह ने बताया कि पुरातात्विक व ऐतिहासिक वस्तुओं को बिना क्षति पहुंचाए उनका पूरा विवरण सामने ला देने वाली अनेक गैर विनाशकारी परीक्षण (एनडीटी) पद्धतियां इंजीनियरिंग में प्रयोग की जाती हैं। इन परीक्षण विधियों के प्रयोग से भी ज्ञानवापी का सत्य जाना जा सकता है।

साथ ही कुंड में शिवलिंग है या फौव्वारा, इसका पता भी लगाया जा सकता है। इसके लिए एक्स रे चित्रण (एक्स रे रेडियाग्राफी), पराबैंगनी किरण छायांकन (यूवी-इमेजिंग) और पराश्रव्य ध्वनि छायांकन (अल्ट्रासोनिक साउंड इमेजिंग) का प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा संघटनात्मक विश्लेषण (एलिमेंटल एनालिसिस) तकनीक से भी जान सकते हैं कि शिवलिंग के ऊपर और आसपास किस तरह के पदार्थ प्रयुक्त हुए हैं।