प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को राजस्थान के सांसदों के साथ बैठक की थी। इसमें चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर भी चर्चा हुई। सियासी गतिविधियों और जमीनी हकीकत को लेकर फीडबैक भी लिया गया। इस बैठक में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते वसुंधरा राजे की मौजूदगी ने सियासी हलचल तेज कर दी है। कुछ लोग इसे उन्हें मिल रही तवज्जो के तौर पर देख रहे हैं तो कुछ लोग महज औपचारिकता।

दरअसल, वसुंधरा राजे के बिना राजस्थान भाजपा की सियासत की चर्चा अधूरी ही रहती है। खुद झालावाड़ से नौवीं से तेरहवीं लोकसभा तक सदस्य रहीं। उसके बाद से उनके पुत्र दुष्यंत सिंह लगातार चार बार से सांसद हैं। लगातार चार बार झालरापाटन और एक बार धोलपुर से विधायक रही हैं। दो बार मुख्यमंत्री रही हैं। केंद्र में मंत्री रही हैं। भाजपा की राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं और अब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। ऐसी स्थिति में सांसदों की बैठक में वसुंधरा की मौजूदगी को लेकर राजस्थान की सियासत में गहमागहमी तेज हो चुकी हैं। वसुंधरा खेमे में यह उम्मीद बंध गई हैं कि पिछले साढ़े चार साल से लगभग निष्क्रिय रहीं वसुंधरा को विधानसभा चुनावों में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। हालांकि, औपचारिक तौर पर कहा गया है कि प्रधानमंत्री जब भी सांसदों से मिलते हैं तो उस राज्य के राष्ट्रीय पदाधिकारी भी बैठक में अवश्य शामिल होते हैं। इसी वजह से वसुंधरा राजे भी इस बैठक में शामिल हुई थीं।

राजस्थान भाजपा में वसुंधरा का रहा है दबदबा
दो बार मुख्यमंत्री और दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहने की वजह से वसुंधरा की राजस्थान की राजनीति पर अच्छी पकड़ है। भाजपा में उनके समर्थकों की कमी भी नहीं हैं। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया से उनकी अदावत किसी से छिपी नहीं है। पूनिया को हटाने की एक वजह यह भी है कि वह सभी गुटों को एकजुट नहीं रख सके। अब प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी को जो जिम्मेदारी मिली है, उसमें पार्टी को एकजुट रखना अहम है।

क्या वसुंधरा को कर दिया है मैसेज- नहीं बनाएंगे सीएम
वसुंधरा ने 30 जुलाई को ट्वीट कर लिखा कि ‘महिलाओं को अपने ही अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है। आज भी उनकी जिंदगी से जुड़े अहम फैसले पुरुष ही ले रहे हैं। मैं जब राजस्थान की राजनीति में आई तब मुझे भी बहुत संघर्ष करना पड़ा, जो आज भी कम नहीं हुआ है। अगर मैं डर जाती तो यहां तक नहीं पहुंचती।’ राजनीतिक पंडितों ने इस ट्वीट को अलग ही नजरिये से देखा। उनका मानना है कि वसुंधरा को मैसेज हो गया है कि 2023 के चुनाव उनके नेतृत्व में नहीं लड़ा जाएगा। इसके दो दिन बाद उन्होंने महाघेराव से दूरी भी बनाई थी। दो दिन पहले प्रधानमंत्री की बैठक में मौजूदगी को सकारात्मक देखा जा रहा है।

गहलोत ने भी दी है राजे को चेहरा बनाने की चुनौती
सांसदों की बैठक में राजे की मौजूदगी यह भी संदेश देती है कि भाजपा एकजुट है। जो भी गुटबाजी थी और नाराजगी थी, उसे दूर कर लिया गया है। फोकस जीत पर है और वह किसी भी हालत में छिटकनी नहीं चाहिए। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही चुनौती दे डाली कि वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाइए। इससे भी भाजपा खेमे में हलचल को बढ़ा दिया है।

चुनावी रणनीति पूरी तरह केंद्रीय नेताओं के हाथ
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खुद राजस्थान के चुनावों की जिम्मेदारी अपने हाथ में ली है। साथ ही केंद्रीय नेताओं को चुनाव प्रभारी और सह-प्रभारी बनाया है। राजस्थान भाजपा से जमीन पर काम करवाया जा रहा है। रणनीति केंद्रीय नेता ही बना रहे हैं। आसपास के पांच राज्यों के 200 विधायकों को भी जमीन पर फीडबैक लेने के लिए उतारने की योजना है। इसकी निगरानी भी केंद्र से हो रही है।