देश में लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ने लगा है। एक तरफ इंडिया गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल, सीट शेयरिंग के लिए माथापच्ची कर रहे हैं, तो दूसरी ओर एनडीए भी अपनी चुनावी रणनीति को धार दे रहा है। राहुल गांधी, न्याय यात्रा निकालने की तैयारी में हैं। इन सबके बीच इंडिया व एनडीए में नए सहयोगियों की तलाश जारी है। ऐसा प्रयास भी हो रहा है कि अगर कोई राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव के लिए किसी भी समूह में शामिल नहीं होता है, तो स्थिति में उसके राजनीतिक नुकसान से कैसे बचा जाए।

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े सूत्रों का कहना है, अगर कोई भी पार्टी, एनडीए में शामिल होना चाहती है, तो उसका स्वागत है। पार्टी अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करेगी। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ भी भाजपा का यही स्टैंड रहेगा। भाजपा खुद से कोई पहल नहीं करेगी। उत्तर प्रदेश में मायावती, भगवा टोली के लिए जोखिम का कारण नहीं बनेंगी। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कई राज्यों में पहले से ज्यादा लोकसभा सीटें हाासिल करने का दावा किया है। इनमें पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब और उत्तर पूर्व सहित कई दूसरे राज्य शामिल हैं।

इंडिया गठबंधन में नीतीश की भूमिका तय नहीं

पिछले दिनों ‘जेडीयू’ को लेकर ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि नीतीश कुमार, देर सवेर एनडीए का दामन थाम सकते हैं। तब इन बातों को इसलिए भी बल मिला था, क्योंकि इंडिया गठबंधन में नीतीश कुमार की भूमिका तय नहीं हुई थी। उन्हें संयोजक बनाने की बात हो रही थी। हालांकि वे अभी तक भी इंडिया गठबंधन के संयोजक नहीं बन सके हैं। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे ललन सिंह को लेकर भी गत दिनों ऐसी चर्चा सुनने को मिली थी कि वे नीतीश का साथ छोड़ सकते हैं। 29 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक में ललन सिंह ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने साफ कर दिया कि वे पार्टी को छोड़कर कहीं नहीं जा रहे हैं। वे अपनी सीट से ही लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, नीतीश कुमार पिछले कुछ समय से दबाव में चल रहे हैं। जेडीयू के भीतर ही उनकी भूमिका और मुख्यमंत्री की कार्यशैली को लेकर सवाल उठ रहे थे। यही वजह रही कि नीतीश कुमार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ ही राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलानी पड़ी। राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पार्टी के संगठन से जुड़े कामकाज को लेकर निर्णय लिए जाते हैं।

क्या जेडीयू के लिए एनडीए में प्रवेश की शर्तें बन रही आसान

गत दिनों यह चर्चा भी रही कि नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल करने के प्रयास हो रहे हैं। इसे लेकर बिहार भाजपा के एक बड़े नेता ने केंद्रीय नेतृत्व तक अपनी बात पहुंचाई थी। हालांकि इस मामले में भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री की भूमिका भी बताई जा रही है। यह भी कहा गया कि एनडीए में जेडीयू के प्रवेश के लिए जो शर्तें बाधा बनी हुई थीं, उनमें से कुछ को हटाया जा सकता है। लोकसभा चुनाव में बिहार के कई राजनीतिक दलों के नेता, भाजपा की तरफ आ सकते हैं। जेडीयू के कई सांसदों ने यह बात नीतीश कुमार तक पहुंचाने का प्रयास किया है। नीतीश कुमार को ऐसे तर्क दिए गए हैं, जिनमें जेडीयू के आरजेडी से गठबंधन करने को नुकसान दायक बताया गया है। इस संबंध में नीतीश कुमार और जेडीयू के सभी सांसदों के बीच दिल्ली में बैठक हुई है। ऐसे संकेत भी मिले हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले कहीं जेडीयू में ही कोई बड़ी टूट न हो जाए। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सूत्रों ने बताया, बिहार में नीतीश कुमार को एनडीए में लाने के लिए भाजपा कोई भी पहल नहीं कर रही है। भाजपा, आगे भी ऐसा प्रयास नहीं करेगी। अगर कोई खुद से और बिना शर्त पार्टी में शामिल होने की इच्छा जाहिर करता है तो उस पर विचार किया जाएगा।

यूपी में बसपा से भगवा टोली को नुकसान नहीं

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सूत्रों ने यूपी में बसपा की भूमिका को लेकर कहा, वहां पर हमें कोई नुकसान नहीं है। यूपी में मायावती, भले ही किसी भी समूह में शामिल न होकर अलग से चुनाव लड़ती है, तो उस स्थिति में भगवा टोली को कोई नुकसान नहीं होगा। यूपी में मायावती का अपने बलबूते लोकसभा चुनाव लड़ना, भाजपा के लिए फायदेमंद है। बसपा की मौजूदा राजनीतिक स्थिति ऐसी नहीं है कि इसके नेता लोकसभा चुनाव के लिए कोई बड़ा निर्णय लें। उनके लिए दिल्ली की सियासत से ज्यादा यूपी में खोई हुई जमीन वापस लेना है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के दौरान बसपा, भाजपा के लिए किसी जोखिम का कारण नहीं बनेगी। दूसरी तरफ बसपा प्रमुख मायावती ने नववर्ष पर अपने संदेश में कहा था, देशवासी इस वर्ष लोकसभा चुनाव में सर्वजन हितैषी सरकार बनाने का प्रयास करें। उन्होंने सरकार को भी रोजगार की गारंटी सुनिश्चित कर सच्ची देशभक्ति का परिचय देने और राजधर्म का निर्वाह करने की नसीहत दी। लोगों की जेब में खर्च के लिए पैसे न हों तो देश के विकास का ढिंढोरा कैसा व लोगों के किस काम का है।

किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी ‘बसपा’

बेरोजगारों की भारी फौज के साथ ‘विकसित भारत’ कैसे संभव है। मायावती ने कहा, भाजपा की केंद्र व राज्य की सरकारें हों या कांग्रेस सहित विपक्ष के गठबंधन की राज्य सरकारें, दोनों ही जबरदस्त महंगाई, विकराल रूप धारण करती गरीबी, बेरोजगारी और पिछड़ेपन जैसी बुनियादी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहीं हैं। सिर्फ लोगों का ध्यान बंटाने के लिए अलग-अलग प्रकार की ‘गारंटी’ वितरण में लगी हैं। बसपा प्रमुख ने कहा था, पहले कांग्रेस और अब भाजपा की लंबी चली जातिवादी, अहंकारी, गैर समावेशी सरकार के दुष्प्रभाव से गरीबों का विकास लगातार बाधित हो रहा है। उससे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा चुनाव में किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनने की बात कही थी। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि बसपा किसी भी खेमे में शामिल नहीं होगी।