1991 में यूपी में राम मंदिर की लहर थी। अतीक निर्दलीय ही खड़ा हुआ। उसने भाजपा के रामचंद्र जायसवाल को 15,743 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया। 1993 के चुनाव में भाजपा ने तीरथ राम कोहली को मैदान में उतारा, लेकिन नतीजा नहीं बदला।

1991 में यूपी में राम मंदिर की लहर थी। अतीक निर्दलीय ही खड़ा हुआ। उसने भाजपा के रामचंद्र जायसवाल को 15,743 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया। 1993 के चुनाव में भाजपा ने तीरथ राम कोहली को मैदान में उतारा, लेकिन नतीजा नहीं बदला। अतीक अहमद 9,317 वोटों से जीतकर लगातार तीसरी बार विधानसभा पहुंचा। कहा जाता है कि इलाके में हर बार बूथ कैप्चरिंग होती, लेकिन कोई भी इसकी शिकायत करने प्रशासन के पास नहीं जाता था।

लगातार तीन बार जीता तो मुलायम सिंह यादव ने उसे मिलने लखनऊ बुलाया और पार्टी में शामिल कर लिया। इस तरह से अतीक पहली बार किसी राजनीतिक पार्टी के बैनर तले 1996 में उसी इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से विधायक बना। इस बार जीत का अंतर 35,099 का रहा। ये उस वक्त जिले की सबसे बड़ी जीत थी, लेकिन इस जीत के बाद उसका सपा से विवाद हुआ और वह सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल में शामिल हो गया।

सोनेलाल खुद हार गए थे, उनकी पार्टी से अतीक बन गया था विधायक
2002 में विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार अतीक सपा के खिलाफ अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा। 11,808 वोटों के अंतर से लगातार पांचवीं बार विधायक बन गया। उस वक्त सोनेलाल खुद चुनाव हार गए थे। पार्टी को दो सीटें मिली थीं। पहली शहर पश्चिमी की और दूसरी फाफामऊ की, जहां अंसार अहमद विधायक बने थे। इस जीत के बाद सपा को लग गया कि अतीक जहां भी रहेगा जीतता रहेगा इसलिए मुलायम सिंह ने उसे बुलाया और दोबारा पार्टी में शामिल करवा लिया।

इस बार इनाम में विधायकी नहीं, बल्कि सांसदी मिली।लगातार 5 बार विधायक रह चुके अतीक अहमद पर मुलायम सिंह ने भरोसा जताया और उसे फूलपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बना दिया। सामने बसपा की केसरी देवी पटेल थीं। अतीक को नहीं रोक पाईं। 64,347 वोटों से जीतकर अतीक सांसद बना। इसके बाद तो उसका रुतबा बढ़ गया। सांसद बना तो शहर पश्चिमी सीट खाली हो गई। 6 महीने बाद उपचुनाव की तारीख का ऐलान हुआ।

हारा अशरफ लेकिन अतीक को लगा जैसे वह हार गया हो

अतीक अहमद ने शहर पश्चिमी सीट पर हो रहे उपचुनाव में अपने छोटे भाई अशरफ को सपा से टिकट दिलवाया। कभी अतीक की टीम का हिस्सा रहे राजू पाल बसपा में शामिल हो गए। मायावती ने उन्हें प्रत्याशी बना दिया। दोनों के बीच कड़ी टक्कर हुई, लेकिन बाजी राजू पाल के हाथ लगी। वह 4 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। ये हार अशरफ की थी, लेकिन अतीक को लगा कि जैसे वह हार गया हो।

25 जनवरी 2005 को शहर पश्चिमी के बसपा विधायक राजू पाल दो गाड़ियों के काफिले के साथ एसआरएन हॉस्पिटल से वापस अपने घर नीवा जा रहे थे। रास्ते में उनके दोस्त सादिक की पत्नी रुखसाना मिली और उन्हें अपने गाड़ी की आगे वाली सीट पर बैठा लिया। राजू पाल खुद क्वालिस ड्राइव कर रहे थे। पीछे वाली सीट पर संदीप यादव और देवीलाल बैठे थे। पीछे जो स्कॉर्पियो चल रही थी उसमें चार लोग बैठे थे। काफिला सुलेमसराय के जीटी रोड पर था तभी बगल से तेज रफ्तार मारुति वैन राजू पाल की गाड़ी को ओवर टेक करते हुए एकदम सामने आकर खड़ी हो गई। राजू की गाड़ी सड़क किनारे बांस-बल्ली की दुकान पर जाकर भिड़ गई।

मारुति वैन से बदमाश उतरे और गोलियों से भूनना शुरू कर दिया

धड़धड़ाते हुए सामने खड़ी मारुति वैन से पांच हमलावर उतरे। ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। तीन गुंडों ने राजू पाल की गाड़ी को घेरकर फायरिंग शुरू कर दी। दो हमलावर काफिले की दूसरी गाड़ी पर फायरिंग करने लगे। किसी को भी उतरने का मौका नहीं दिया।

हत्या के आरोप के बाद भी सत्ता में बना रहा अतीक
राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद अतीक सत्ताधारी सपा में बना रहा। 2005 में उपचुनाव हुआ। बसपा ने पूजा पाल को उतारा और सपा ने दोबारा अशरफ को टिकट दिया। पूजा पाल के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी। उनकी शादी को मजह 9 दिन हुए थे और वो विधवा हो गई, लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला। अशरफ चुनाव जीत गया।

विधायकी की आड़ में क्राइम करता रहा अतीक

अतीक धीरे-धीरे एक बड़ा नेता तो बन गया, लेकिन अपनी माफिया वाली छवि से वो कभी बाहर नहीं निकल पाया। बल्कि नेता बनने के बाद उसके अपराधों की रफ्तार और तेज हो गई। यही वजह है कि उसके ऊपर दर्ज अधिकतर मुकदमे विधायक-सांसद रहते हुए दर्ज हुए।साल 2005 में राजू पाल की हत्या से पहले अतीक पर साल 1989 में चांद बाबा की हत्या, साल 2002 में नस्सन की हत्या, साल 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या के आरोप लगे। ऐसा कहा जाता था कि जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाने की कोशिश करता, मारा दिया जाता। अतीक के खिलाफ अब तक 101 मुकदमे दर्ज हैं।

साल 2007 में जब बसपा की सरकार आई तो हालात बदले। अतीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई। 5 जुलाई 2007 को उमेश ने अतीक, अशरफ समेत कुल 11 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। खुद इस केस की पैरवी हाई कोर्ट में करते रहे। अतीक का भाई अशरफ लगातार अपने भाई के अपराधों में उसका साझीदार रहा। किसी भी बड़ी घटना में अतीक के साथ अशरफ का नाम सामने आया था। सबसे बड़ा मामला राजू पाल हत्याकांड का था।

अशरफ ने ही पूरे हत्याकांड को अंजाम दिया। इतना ही नहीं उमेश पाल अपहरणकांड में अतीक के साथ अशरफ का नाम आया था। अशरफ और अतीक 2007 में बसपा सरकार बनने के बाद साथ में फरार हुए थे। दोनों भाई साथ में रहते थे। अतीक अपने भाई अशरफ को इतना ज्यादा मानता था कि राजू पाल हत्याकांड उसने अपने भाई के इशारे पर ही करवाया था।