स्वास्थ्य सेवाओं का हाल ये है कि उसे खुद धरती के भगवान की जरूरत है। चारों ओर डॉक्टरों की कमी का रोना है, शासन की प्राथमिकता वाली योजनाओं के क्रियान्वयन में हीलाहवाली, विषय विशेषज्ञ डॉक्टरों का अभाव ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से स्वास्थ्य सेवाएं इस दौर से गुजर रही हैं। जेएन मेडिकल कॉलेज न हो तो हायतौब्बा मच जाए, क्योंकि अधिकांश सरकारी अस्पताल रेफरल यूनिट बन कर रह गए हैं।
बमुश्किल अलीगढ़वासी कोरोना के खतरनाक संक्रमण काल से बच कर निकलें हैं। इस दौर में स्वास्थ्य सेवाओं में कई सुधार किए गए। सरकारी अस्पतालों में वेंटीलेटर युक्त आईसीयू वार्ड से लेकर ऑक्सीजन प्लांट तक लगाए गए। बावजूद इसके स्वास्थ्य सेवाओं में जिला प्रदेश में 22वें स्थान पर है। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल ये है कि उसे खुद धरती के भगवान की जरूरत है। चारों ओर डॉक्टरों की कमी का रोना है, शासन की प्राथमिकता वाली योजनाओं के क्रियान्वयन में हीलाहवाली, विषय विशेषज्ञ डॉक्टरों का अभाव ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से स्वास्थ्य सेवाएं इस दौर से गुजर रही हैं। जेएन मेडिकल कॉलेज न हो तो हायतौब्बा मच जाए, क्योंकि अधिकांश सरकारी अस्पताल रेफरल यूनिट बन कर रह गए हैं। आज विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर प्रशासन और शासन को इस पर न सिर्फ मंथन करना चाहिए बल्कि इस पर गंभीरता से काम भी करना चाहिए।
अस्पतालों की ओपीडी और इमरजेंसी में लाखों की भीड़
जिला मुख्यालय के तीन सरकारी अस्पताल और एक जेएन मेडिकल कॉलेज की बात करें तो जिला अस्पताल में हर दिन 1500 मरीजों की ओपीडी और इमरजेंसी में भी 100 से अधिक मरीज आते हैं। साल में यहां पांच लाख मरीजों के आने का औसत है। इसी तरह दीनदयाल में भी ओपीडी में 1200 और इमरजेंसी में 150 मरीजों के आने का औसत है। साल में यहां 4 लाख मरीजों के आने का औसत है। जेएन मेडिकल कॉलेज में हर दिन ओपीडी में 5 से 6 हजार व इमरजेंसी में 250 मरीज का औसत है। महिला अस्पताल में भी प्रतिदिन 30 प्रसव व 8 ऑपरेशन होते हैं। मेडिकल कॉलेज को छोड़कर बाकी तीनों अस्पतालों में या तो विषय विशेषज्ञ के अभाव में मरीज प्राथमिक उपचार के बाद रेफर किए जाते हैं या फिर मामूली बीमारी वाले मरीजों को दवा देकर घर भेजा जाता है।
इन समस्याओं से जूझ रहे सरकारी अस्पताल
बात अगर जिला अस्पताल की करें तो यहां इमरजेंसी में स्थायी डॉक्टर नहीं है। यहां सीएमओ आफिस से डॉक्टर संबद्ध हैं। यहां तीन फिजीशियन की जरूरत है, मगर एक भी नहीं है। यहां हृदय रोग विशेषज्ञ की कमी है। एक मात्र जनरल सर्जन हैं, जिनके अवकाश पर होने पर ओटी में ताला लग जाता है। इसी तरह दीनदयाल अस्पताल में रेडियालॉजिस्ट की कमी है। एक माह से अधिक समय से अल्ट्रासाउंड कक्ष पर ताला लगा है। हृदय रोग विशेषज्ञ का तबादला हुआ था। तब से यह पद खाली है। मगर अब उनके वापस आने की खबर है। डॉक्टरों की कमी के कारण 50 बेड का आईसीयू मात्र 10 बेड के आईसीयू के रूप में चलाया जा रहा है। महिला अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ, एनेस्थेटिक आदि की कमी है। जिले के लिए भी 20 विषय विशेषज्ञों की जरूरत है, जिनमें बाल रोग, स्त्री रोग, फिजीशिन बेहद कम हैं। इनकी कमी से जैसे तैसे उपचार चलाया जा रहा है।
ट्रामा सेंटर बना रेफर सेंटर, मलहम-पट्टी के अलावा कोई सुविधा नहीं
अलीगढ़। राष्ट्रीय राजमार्ग पर गांव जसरथपुर के पास डीडीयू से संबद्ध ट्रामा सेंटर का शिलान्यास पहले 2015 में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने और लोकार्पण 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। ट्रामा सेंटर में अभी एक डाक्टर समेत 17 लोगों का स्टाफ तैनात बताया जा रहा है। जिनमें से पांच लोगों की डुयूटी अकराबाद सीएचसी पर और दो की भिनौली पीएचसी पर लगी हुई है। फिलहाल ट्रामा सेंटर पर मात्र एक एमबीबीएस डाक्टर के साथ 9 पैरामेडिकल का स्टाफ मौजूद है। यहां हर दिन दस से पंद्रह दुर्घटना केस आते हैं, जिन्हें प्राथमिक उपचार के बाद रेफर ही किया जाता है।