दिल्ली सेवा बिल को मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया है। गृह राज्य मंत्री नित्यानन्द राय ने इस बिल को पेश किया। वहीं विपक्ष की कई पार्टियां इस बिल का विरोध कर रही हैं तो कई पार्टियों ने इस बिल को अपना समर्थन भी दे दिया है। इस खबर में जानिए कि क्या है दिल्ली ऑर्डिनेंस बिल और इससे क्या बदल जाएगा।

दिल्ली सेवा बिल को मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया है। गृह राज्य मंत्री नित्यानन्द राय ने इस बिल को पेश किया। विधेयक में कुछ नियमों को ठीक किया गया, तो कुछ चीजें हटाई गई हैं। विधेयक संसद के दोनों सदनों से पास हो जाता है तो दिल्ली में सरकार के सभी अधिकार अधिकारियों के माध्यम से उपराज्यपाल के पास चले जाएंगे।

क्या है मामला?

दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम 1991 लागू है जो विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। साल 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था। जिसमें दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे। इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार भी दिए गए थे। संशोधन के मुताबिक, चुनी हुई सरकार को किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेना जरूरी था।

दिल्ली सेवा अध्यादेश क्या है?

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 11 मई को इस पर अपना फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि दिल्ली में जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे प्रशासनिक फैसले लेने के लिए दिल्ली की सरकार स्वतंत्र होगी। अधिकारियों और कर्मचारियों का ट्रांसफर और उनकी पोस्टिंग भी कर दिल्ली सरकार खुद से कर पाएगी।

उपराज्यपाल इन तीन मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार के बाकी फैसले मानने के लिए बाध्य हैं। इस फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती उपराज्यपाल पास थे।

हालांकि, कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। केंद्र ने ‘गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली ऑर्डिनेंस, 2023’ लाकर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया।

जिसके बाद इस अध्यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन किया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और गृह सचिव को इसका सदस्य बनाया गया है। मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के अध्यक्ष होंगे और बहुमत के आधार पर यह प्राधिकरण फैसले लेगा। हालांकि, प्राधिकरण के सदस्यों के बीच मतभेद होने पर दिल्ली के उपराज्यपाल का फैसला ही अंतिम फैसला माना जाएगा।

दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, वह केजरीवाल सरकार के पक्ष में था। ऐसे में इस कानून में संशोधन करके या नया कानून बनाकर ही पलटा जाना संभव था। संसद उस वक्त चल नहीं रही थी, ऐसे में केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर इस कानून को पलट दिया। 6 महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों में किसी भी अध्यादेश को पारित करावाना जरूरी होता है। इसीलिए मंगलवार को सरकार लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 (Delhi Ordinance Bill 2023) लेकर आई।

बता दें कि नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट में भी बदलाव किया गया है। इसके तहत एलजी को ऑफिसरों के ट्रांसफर, पोस्टिंग आदि में अधिकार दिया गया है। केंद्र सरकार दिल्ली के मामले में तय करेगी कि ऑफिसर का कार्यकाल क्या हो, सैलरी, ग्रेच्युटी, पीएफ आदि भी तय करेगी। उनकी पावर, ड्यूटी और पोस्टिंग भी केंद्र तय करेगी। किसी पद के लिए उनकी योग्यता, पेनल्टी और सस्पेंशन आदि की पावर भी केंद्र के पास ही होगी।

कैसे पास होता है अध्यादेश

संविधान के अनुच्छेद 123 में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों का वर्णन किया गया है। अगर कोई ऐसा विषय हो जिस पर तत्काल कानून बनाने की जरूरत हो और उस समय संसद न चल रही हो तो अध्यादेश लाया जा सकता है। अध्यादेश का प्रभाव उतना ही रहता है जितना संसद से पारित कानून का होता है। इन्हें कभी भी वापस लिया जा सकता है।

इस अध्यादेश के जरिए नागरिकों से उनके मूल अधिकार नहीं छीने जा सकते। केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करते हैं चूंकि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है। ऐसे में किसी भी अध्यादेश के लिए संसद की मंजूरी आवश्यक होती है।

कब हुई थी इसकी शुरूआत?

इस बिल और उससे पहले अध्यादेश के आने की शुरुआत 2015 में हुई थी। एक नोटिफिकेशन के जरिए केंद्रीय गृह मंत्री ने दिल्ली में जितने भी अधिकारी और कर्मचारी तैनात थे उनके ट्रांसफर और पोस्टिंग के सभी अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल को दे दिए थे।

शुरुआत में इसे लाने का उद्देश्य दिल्ली, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली (सिविल) सेवा (DANICS) कैडर के कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग समेत उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही से जुड़े फैसले लेना था। इसके लिए एक निकाय की स्थापना करना था। इस मामले में दिल्ली सरकार ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी, जिसने दिल्ली सरकार का मामला पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया गया था।

केजरीवाल सरकार ने कोर्ट में क्या अपील की थी?

  • आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सर्वोच्चता होनी चाहिए और दिल्ली का प्रशासन चलाने के लिए IAS अधिकारियों पर राज्य सरकार को पूरा नियंत्रण मिलना चाहिए।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर आदेश सुनाया कि एलजी के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते हैं। एलजी की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती हैं।
  • अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होना चाहिए। उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी। पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास रहेगा।

बिल में क्या-क्या है?

  • विधेयक में एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण स्थापित करने का प्रस्ताव है जो दिल्ली सरकार में सेवारत सभी समूह ए अधिकारियों (IAS) और दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप सिविल सेवा (DANICS) के अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग की सिफारिश करेगा।
  • दिल्ली के मुख्यमंत्री प्राधिकरण के पदेन अध्यक्ष होंगे। इसमें दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव भी शामिल होंगे।
  • प्राधिकरण के भीतर सभी निर्णय बहुमत से लिए जाएंगे और एलजी प्राधिकरण की सिफारिशों के आधार पर निर्णय लेंगे। प्राधिकरण की सभी सिफारिशें सदस्य-सचिव द्वारा प्रमाणित की जाएंगी।
  • हालाँकि, उपराज्यपाल ग्रुप ए अधिकारियों के बारे में प्रासंगिक दस्तावेज मांग सकते हैं और यदि कोई मतभेद है, तो उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा।
  • प्राधिकरण उपराज्यपाल को स्थानांतरण, पोस्टिंग और सतर्कता जैसे मुद्दों पर सलाह देगा।
  • विधेयक के अनुसार, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और इसलिए इसका प्रशासन राष्ट्रपति के पास है।
  • विधेयक में कहा गया है कि राष्ट्रपति, संसद, सर्वोच्च न्यायालय, विभिन्न संवैधानिक पदाधिकारी, विदेशी राजनयिक मिशन, अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां आदि जैसे कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थान और प्राधिकरण दिल्ली में स्थित हैं और अन्य देशों के उच्च गणमान्य लोग दिल्ली का आधिकारिक दौरा करते हैं।
  • यह विधेयक राजधानी के प्रशासन में केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के हित के साथ राष्ट्र के हित को संतुलित करेगा और केंद्र सरकार के साथ-साथ दिल्ली सरकार में विश्वास रखने वाले लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करेगा।
  • प्राधिकारी किसी भी दंड को लगाने में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का निर्णय करेगा, दंड लगाने से पहले विभागीय जांच लंबित रहने तक निलंबन और वह प्राधिकारी जिसके द्वारा इस तरह के निलंबन या दंड का आदेश दिया जा सकता है और वह अधिकारी या प्राधिकारी जिसके पास अपील या पुनरीक्षण किया जाएगा और अन्य मामला जो सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति और सेवा शर्तों को विनियमित करने के उद्देश्य से प्रासंगिक या आवश्यक है।
  • उपराज्यपाल, ऐसी सिफारिश की प्राप्ति के बाद, की गई सिफारिश को प्रभावी करने के लिए उचित आदेश पारित करेंगे।
  • इस बीच, मानसून सत्र के दौरान सदन में पेश होने से पहले विधेयक की प्रतियां लोकसभा सांसदों को वितरित की गईं।
  • केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस विधेयक को संसद के निचले सदन में पेश कर सकते हैं।

AAP कर रही बिल की आलोचना

  • AAP ने केंद्र पर दिल्ली के लोगों को “धोखा” देने का आरोप लगाते हुए अध्यादेश का विरोध किया है।
  • आप के मुख्य प्रवक्ता और सेवा मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा था कि यह सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली के लोगों द्वारा किया गया एक धोखा है, जिन्होंने केजरीवाल को तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में चुना है। उनके पास कोई शक्तियां नहीं हैं, लेकिन उपराज्यपाल, जिन्हें चुना भी नहीं गया है, लेकिन लोगों पर थोप दिया गया है। शक्तियां और उनके माध्यम से, केंद्र दिल्ली में होने वाले कार्यों पर नजर रखेगा। यह अदालत की अवमानना है।
  • केजरीवाल ने स्वयं पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ अधिकांश गैर-भाजपा शासित राज्यों का दौरा किया था और विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर कानून का विरोध करने के लिए उनका समर्थन मांगा था।

विधेयक से ये नियम हटाए गए

  • अध्यादेश के माध्यम से धारा 3ए के रूप में जोड़े गए “दिल्ली विधानसभा के संबंध में अतिरिक्त प्रविधान” को विधेयक में हटा दिया गया है। अध्यादेश की धारा 3ए में कहा गया था कि किसी न्यायालय के किसी भी फैसले, आदेश में कुछ भी शामिल होने के बाद भी विधानसभा को सूची-II की प्रविष्टि 41 में उल्लिखित किसी भी मामले को छोड़कर अनुच्छेद 239AA के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी।
  • विधेयक में आर्टिकल 239 एए पर जोर है, जो केंद्र को नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथारिटी (NCCSA) बनाने का अधिकार देता है।
  • राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की “वार्षिक रिपोर्ट” को संसद और दिल्ली विधानसभा में पेश करने को अनिवार्य बनाने वाला प्रविधान।
  • केंद्र सरकार को भेजे जाने वाले प्रस्तावों या मामलों से संबंधित मंत्रियों के आदेशों, निर्देशों को उपराज्यपाल और दिल्ली के मुख्यमंत्री के समक्ष रखना अनिवार्य करने वाला प्रविधान।

विधेयक में ये जोड़ा गया

दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियमित कानून द्वारा बनाए गए कियी बोर्ड या आयोग के लिए नियुक्ति के मामले राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण नामों के एक पैनल की सिफारिश उपराज्यपाल को करेगा।

यानी विधेयक में एक नए प्रविधान में कहा गया है कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार द्वारा गठित बोर्डों और आयोगों में राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण द्वारा अनुशंसित नामों के एक पैनल के आधार पर नियुक्तियां करेंगे, जिसकी अध्यक्षता दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे। लेकिन इस प्राधिकरण में मुख्यमंत्री अल्पमत में हैं। यानी वह इस प्राधिकरण में अपने अनुसार कुछ भी नहीं करा सकते हैं।